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Thursday, July 29, 2010

शहीदों के मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशा होगा

शहीदों के मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशा होगा :- बचपन में मैंने एक फिल्म देखी थी, फिल्म का नाम था हकीकत" जिसमे १९६२ का भारत और चीन युद्ध का चित्रण किया गया था, उस फिल्म में एक गीत थी जो बहुत ही मार्मिक थी उस गीत को सुनने पर रोंगटे खड़े हो जाते थे, गीत का बोल था:-
खिंच दो अपने खून से ज़मी पर लकीर, इस तरफ ना पायेगा रावण कोई
काट दो हाथ जो हाथ उठने लगे , छु ना पायेगा सीता का दामन कोई
राम तुम ही तुम्ही लक्छमन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

हमारे उन शहीदों के लिए जिन्हों ने देश कि गरिमा को बचाने के लिए अपनी कुर्बानियां दी उनकी याद में लता जी ने भी एक गीत गायी है, उसके बोल कुछ इस तरह है :-
थी खून से लतपथ काये, फिर भी बन्दूक उठाके, एक-एक ने दस को मारा
फिर गिर गए होश गँवा के, जब अंत समय आया तो, कह गए कि अब चलते है
खुश रहाना देश के प्यारों, अब हम तो सफ़र करते है, अब हम तो सफ़र करते हैं,
एय मेरे वतन के लोंगो जरा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो क़ुरबानी

आज हम उनके कुर्बानियों को याद करते है। चलिए इसी बहाने उन शहीदों को साल में एक बार तो याद कर ही लेते हैं जिन्हों ने अपने वतन के लिए कुर्बानियां दी। लेकिन जिस माँ-बाप ने अपने कलेजे के टुकड़े को इस देश के लिया हँसते-हँसते नौछावर, किया जिस पत्नी ने अपने सुहाग का बलिदान किया, जिस बच्चे ने अपने पिता को खोया, इस देश ने उन्हें क्या दिया ? इस देश ने उन्हें एक सम्मान भरी जिंदगी भी नहीं दे पाई। सिर्फ मृत शारीर को सम्मान देना ही सम्मान नहीं है बल्कि जिस नौजवान ने देश के लिए बलिदान दिया है वह बलिदान तो सबसे बड़ा बलिदान होता है तो फिर देश का यह कर्तव्य बनता है कि जिस नौजवान ने देश के लिए अपना बलिदान किया है उसकी जिम्मेवारियों को देश तब-तक उठाये जब-तक उस बलिदानी के बच्चे अपने पांव पर खड़े नहीं हो जाते हैं। क्यों कि उसका बलिदान तो देश पर क़र्ज़ है, तो इस क़र्ज़ से मुक्ति पाने के लिए, देश को उनकी जिम्मेवारियां तो उठानी ही पड़ेगी।

Thursday, July 22, 2010

कलंक का किल ठुका बिहार के माथे पर

अशोक सम्राट कि नगरी पाटलिपुत्र, गौतम बुद्ध एवं महाबीर कि ज्ञान स्थली, गुरु गोविन्द सिंह कि जन्म-स्थली, राजनिती के सबसे बड़े ज्ञाता चाणक्य कि धरती, महात्मा गाँधी एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण कि कर्म भूमि पर जो माननीय विधायकों ने विधान सभा एवं विधान परिषद् में अमानवीय रूप दिखाया वह अशोभनीय है। इसकी जीतनी भी निंदा कि जाय वो भी कम है इन विधायकों का रौद्र रूप देख कर यह नहीं लग रहा था कोई मानव लड़ रहा है लगता था कोई अशुर लड़ रहा है। ये हमारे बिहार के माननीय विधायक गण है जो हम आप जैसे लोंगो का मत लेकर विधान सभा में पहुंचे है। आप इनसे क्या उम्मीद करेंगे ? क्या ऐसे लोग बिहार को आगे ले जायेंगे ? बिहार कि गरिमा जो पहले से धूमिल है क्या और धूमिल नहीं हुई ? विधान सभा या विधान परिषद् इनके घर का आंगन नहीं है जो गाली-गलौज, मार-पिट और कुर्शी फेकौअल तक करते है। क्या इनको रत्ती भर शर्म आती है अपने किये पर ? अगर शर्म आती तो दुसरे दिन विधान परिषद् में यह घटना नहीं घटती। इस लड़ाई में पझ और विपझ दोनों ने अपना-अपना रूप दिखाया है। गलती किसी कि भी हो कलंक तो बिहार के माथे पर ही लगा। बिहार के सपूतों ने बिहार के माथे पर कलंक का एक और किल ठोंक दिया। इन में से ज्यादातर सदस्य गण जे पी आन्दोलन के सदस्य रहे है, अगर जय प्रकाश नारायण कि आत्मा ऊपर से इन लोंगो के व्यवहार को देखती होगी तो क्या महशुस करती होगी, उन्हों ने तो इनको एक अच्छे राजनितिग्य बनाये, सत्ता में जाने के रास्ते बताये उन्हें क्या मालूम था कि ये सत्ता में जाने के बाद इंसानियत ही खो देंगे। अगर हमारे इन माननीय विधायकों में जरा भी इंसानियत बची हुई है या जनता के प्रति जरा भी लगाव है तो ये सारे विधायक बिहार कि जनता तथा देश कि जनता से मांफी मांगे और कसम खाएं फिर यह घटना दुबारा नहीं होगी
अगर यह घटना निकट भविष्य में होने वाले चुनाव को ध्यान में रख कर किया गया है या आम जनता के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए किया गया है तो मै यही कहूँगा कि अब बिहार के लोग इतने बेवकूफ और गंवार नहीं है जो हो रही इन घटनावों को नहीं समझ रहें है यह बिहार, बिहार कि जनता कि है कुछ मुठ्ठी भर राज नेतावों कि नहीं है इसलिए ये राज नेता अपनी मनमानी बंद करें नहीं तो बिहार कि जनता आने वाले चुनाव में सबक सिखा सकती है

Wednesday, July 21, 2010

बढ़ता तापमान बिहार विधान सभा का

आज दिनांक २०/०७/२०१० दिन मंगल वार को बिहार विधान सभा का तापमान एकाएक ऐसा बढ़ा कि हमारे माननीय सदस्य गण अपना आपा खो दिए और बिहार के चहरे पर एक ऐसा कालिख पोत दिए जो मिटाने से भी नहीं मिट सकती। ये वो सदस्य गण है जिन्हें जनता ने अपना अमूल्य वोट (विश्वास) देकर विधान सभा में भेजा था, शायद उस जनता का भी इन लोंगो ने कद्र नहीं किया, अगर ये कद्र किये रहते तो ये घटना नहीं घटती और लोकतंत्र के चहरे पर कालिख नहीं पुतता। पढ़े- लिखे और सभ्य लोंगो के बीच में जो भी बहस होती है वह मर्यादा के अन्दर होती है, हाँ अनपढ़ गंवार और असभ्य लोंगो के बीच में जो बहस होती है वह मर्यादित नहीं होती है इसीलिए वो मार-पिट, गाली-गलौज तक कि सीमाएं पार कर जाते है। यह उनके लिए छम्य है क्यों कि वो अनपढ़, गंवार और असभ्य लोग है। लेकिन बिहार विधान सभा में जो घटना घटी वह यही जाहिर करता है इस सभा में भी असभ्य लोग है, क्यों कि सभ्य लोंगों कि यह लड़ाई नहीं थी। बात इतनी बड़ी नहीं थी जिसके लिए इतनी बड़ी घटना हुई। बात है ११४१२ करोड़ सरकारी रुपये कि निकासी का जिसका लेखा-जोखा सरकार के पास नहीं दिया गया है तथा उच्च न्यायालय ने सी बी आई जाँच के आदेश दे दिए है। अभी जाँच चल रही है जो लेखा-जोखा माँगा जायेगा वह वर्तमान सरकार देगी, तब जो न्याय सामने आएगा उस पर विपझ सरकार से त्याग पत्र मांगे।
बिधान सभा में ऐसी घटना घटी क्यों? क्या वर्तमान में जो विधान सभा चुनाव होना है उसको ध्यान में रखकर इस घटना को अंजाम दिया गया ताकि लोंगो का ध्यान आकृष्ट हो शके। यह तो राजनीत का सबसे घिनौना चेहरा सामने आया है। अगर वोट कि राजनीत को लेकर यह खेल खेला गया है तो पब्लिक इतनी बेवकूफ नहीं है जो इन बातों को नहीं समझती है।

Tuesday, July 20, 2010

बिहार कि विडंवना

बिहार... एक ऐसा प्रान्त जो अपनी बदनामी कि दाग लिए जी रहा है। शायद बिहार के लोंगो ने ही बिहार को इस स्थिति तक पहुँचाया है। आज बिहार पुरे भारत में अपनी बदनामी के लिए मशहूर है बल्कि दुसरे राज्यों में बिहारी कहलाना भी अपमान है, इसीलिए दुसरे राज्यों में बसे हुए बिहारी अपने को बिहारी कहने से हिचकते है। इससे बड़ी बिडम्बना और क्या हो सकती है बिहारी लोग दुसरे राज्यों में अपनी पहचान छिपाते है। आप भारत के किसी भी राज्य में जाएँ आपको ऑटो रिक्शा या रिक्शा चालक ज्यादातर बिहारी मिलेंगे, फैक्टरियों में काम करने वाले , बहुमंजिली इमारतो में काम करने वाले, होटलों में काम करने वाले, खेतों में काम करने वाले मजदूर ज्यादातर बिहार प्रान्त से ही है। अब दूसरी बात - आप उत्तर भारत के किसी भी राज्य, महाराष्ट या भारत के और राज्यों में जाइये वहां के जितने भी कॉलेज है चाहें वह इंजीनियरिंग, मेडिकल, एम् बी इत्यादि इत्यादि इन सभी कालेजों में बिहारी छात्रों कि संख्या ज्यादा मिलेगी। मतलब यह कि बिहार में रोजगार एवं कल-कारखाने नहीं होने के करण बिहारी लोग दुसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते है क्यों कि वहां उनको काम आसानी से मिल जाता है और मजदूरी भी भरपूर मिलती है। अब रही बिहारी छात्रों कि बात - तो छात्रों कि छमता के हिसाब से इंजीनियरिंग, मेडिकल, एम् बी इत्यादि इत्यादि कालेजों कि कमी के चलते यहाँ के छात्र दुसरे राज्यों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते है। जब ये लड़के अपनी पढाई समाप्त कर नौकरी में जाते है तो फिर बिहार आने से हिचकते है और ये उसी राज्य और शहर के बन कर रह जाते है। क्या बिहार के लोंगो ने कभी इस पर ध्यान दिया है ? शायद नहीं।
आज क्या करण है कि नौकरी करने वाले राज्यों का प्रतिशत निकला जाय तो बिहार उसमे अव्वल आएगा। क्यों कि यहाँ नौकरी करना या नौकर बनना मुख्य पेशा बन गया है। हम बिहारी लोग अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर (चाहे पढ़ाने में कितना भी खर्च क्यों ना हो) एक अच्छा नौकर बनाते है कभी उनको मालिक नहीं बनाते या मालिक बनने कि शिक्षा नहीं देते। क्या हम बिहारियों कि यह गलत सोंच नहीं है ? अगर हम अपने बच्चों को मालिक बनाने कि कोशिश करते तो शायद वो अपने ही राज्य में कल-कारखाने लगाते, जिससे कि बिहार के लोंगो को ज्यादा से ज्यादा रोज़गार मिलता तो फिर वो दुसरे राज्यों में क्यों जाते मेहनत मजदूरी करने के लिए। रही बात बिहारी छात्रों के लिए कॉलेज कि बात - आप उत्तर भारत के राज्यों महाराष्ट्र भारत के और राज्यों में जितने भी इंजीनियरिंग, मेडिकल, एम् बी इत्यादि कॉलेज है या तो वह किसी ऍम पी, मंत्री, राजनेता या उद्योग घराने का है, वहां के लोंगो को अपने राज्य से लगाव है इसलिए अपने राज्य में ही कॉलेज खोलें है, ताकि राज्य कि आमदनी बढ़ सके और लोंगो का जीवन स्तर ऊँचा हो लेकिन हमारे बिहार के राजनेता, मंत्री, एम् पी ऐसी नहीं सोंच नहीं रखते है पैसा या पॉवर आने पर वो अपनी एक अलग पार्टी बना लेते है ताकि वो सत्ता में या सत्ता के करीब रह सके इससे राज्य कि आमदनी तो नहीं बढ़ जाएगी या लोंगो को रोज़गार तो नहीं मिल जायेगा आज बिहार का पैसा उत्तर भारत के राज्यों और भारत के अन्य राज्यों को जा रहा है अगर बिहार में यह सभी सुविधा उपलब्ध होती तो यह पैसा बिहार के पास ही रहता बल्कि दुसरे राज्यों का पैसा भी बिहार में आता, और जब पैसे ज्यादा आता है तो रोज़गार के तरीके भी ज्यादा समझ में आने लगते है