Monday, November 15, 2010

छेत्रिय पार्टियों की चांदी ही चांदी



भारतीय राजनीत में छेत्रिय पार्टियों का घुसपैठ तेजी से बढ़ता जा रहा है जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड रहा है क्यों कि किसी भी राष्ट्रिय पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण सरकार बनाने के लिए उसे छेत्रिय पार्टियों से किसी भी स्तर पर समझौता करना पड़ता है चाहे वो केंद्र में मंत्री पद ही क्यों न हो? आज बहुत सी छोटी-छोटी छेत्रिय पार्टियों कि संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इन छेत्रिय पार्टियों का निर्माण वैसे लोगों ने किया है जो अति- महत्वाकानच्छी है तथा जनता में उनकी पैठ है। वो राज्य में अपनी सरकार किसी भी सूरत में बना तो लेते है लेकिन केंद्र में वो पंद्रह, बीस या पच्चीस सांसद ही भेज पाते है, नतीजा वही होता है कि कोई भी राष्ट्रिय पार्टी सरकार बनाने भर बहुमत नहीं जुटा पाती है जिसके चलते छेत्रिय पार्टियों से हाथ मिलनी पड़ती है या यूँ कंहे कि छेत्रिय पार्टियाँ केंद्र कि सत्ता में अति महत्त्वपूर्ण पद पाने के लिए ब्लैक-मेलिंग शुरू कर देती है। एन-केन-प्राकेन किसी भी तरह मंत्री पद हांसिल करने के बाद जनता के पैसों कि लूट शुरू होती है। ये छेत्रिय पार्टियाँ समाज सेवा या देश को आगे बढ़ाने कि भावना से पार्टी का निर्माण नहीं करते बल्कि इसके पीछे एक ही मकसद होता है कि इतने सांसद जीत जाएँ जिससे केंद्र में सरकार बनाने में सहयोग कर सकें और मंत्री पद मिले फिर तो जनता के पैसों को लूटना ही है और अगर चोरी पकड़ी भी जाती है या मंत्री पद छोड़नी भी पड़ती है तो सरकार को अल्प-मत में तो ला ही देंगे, मतलब "चोरी भी और सीनाजोरी भी" । यह छेत्रिय पार्टियाँ अब ब्लैक-मेलरों, चोरों और उच्चकों कि पार्टियाँ बनती जा रही है और इसमें तमाम वैसे लोग जुड़े है जो जनता के खजाने कि चाभी हांसिल करना चाहते है।
भारत कि आज़ादी के बाद से केंद्र और राज्य में कांग्रेस पार्टी कि सरकार ज्यादातर सत्ता में रही है और शायद इसकी गलत नीतियों के कारण ही छेत्रिय पार्टियों का जन्म हुआ। पहले तो यह छेत्रिय पार्टियाँ भारत के दबे कुचले गरीब लोगों कि आवाज़ बनी तथा जनता का भी भरपूर समर्थन इन छेत्रिय पार्टियों को मिला जिसके चलते ये सत्ता कि सीढियाँ चढ़ते गए। सत्ता में आने के बाद पद,पावर और पैसा तीनो मिला। शायद पद,पावर और पैसा ये तीनो मिलते ही छेत्रिय पार्टिया दिशाहीन हो गई और सत्ता के खेल के ये माहिर खिलाडी बनते गए जो किसी भी रूप में सत्ता के करीब रहना इनके फितरत में शामिल होता गया। सत्ता के करीब रहने के लिए ढेर सारे पैसो कि जरुरत पड़ती है इसलिए मंत्री पद मिलते ही ये जनता के पैसो को लूटना शुरू कर देते है। खुदा ना खास्ता अगर चोरी पकड़ी भी जाती है तो इनके समर्थन में वही बड़ी सत्ता धारी पार्टी खड़ी हो जाती है, क्यों कि ये मंत्री भी तो उसी के सरकार में है और यही शुरू होता है पद का दुरूपयोग।
आज केंद्र कि सरकार में जनता के पैसो का कैसे चुना लगाया जा रहा है इसके मिसाल है दूर संचार मंत्री ऐ राजा। जिन्हों ने टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला में जनता के १.७६ लाख करोड़ रूपया का चुना लगाये है तथा इन पर ७० हजार करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप है। ऐ राजा छेत्रिय पार्टी द्रमुक से सांसद है तथा जिसके संचालक एम्.करूणानिधि है। केंद्र में कांग्रेस पार्टी कि सरकार है और ऐ राजा इन्ही कि सरकार में दूर संचार मंत्री है। कांग्रेस कि महानता देखिये कि अपने पद का दुरूपयोग करने के बाद भी ऐ राजा मंत्री पद त्यागने को तैयार नहीं थे और कांग्रेस भी उनपर दबाव नहीं डाल पा रही थी क्यों कि द्रमुक के समर्थ से ही केंद्र कि सत्ता में कांग्रेस बैठी है और अगर द्रमुक अपना समर्थन वापस ले लेती तो कांग्रेस अल्प-मत में आ जाती, इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस अध्यच्छ श्रीमती सोनिया गाँधी तथा वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने रविवार सुबह राजा मामले पर उपजे संकट पर गहन मंत्रणा कि थी और अपने महानता का परिचय देते हुए कांग्रेसी वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने एम्.करूणानिधि से बात कि और स्पस्ट तौर पर बता दिया कि अब पानी सर के ऊपर बह रहा है इसलिए राजा को मंत्रिमंडल में बनाये नहीं रखा जा सकता है इसलिए राजा अपने पद से इस्तीफा दे और यह दूर संचार विभाग आप ही के सुपुर्द करता हूँ राजा कि जगह किसी और को यह मंत्री पद दे दे ताकि केंद्र सरकार पर आये इस संकट को दूर किया जा सके। धन्य हो एम्.करूणानिधि का जिनके कहने पर राजा ने मंत्री पद से त्यागपत्र दिए। मतलब जो घोटाला हुआ है उसे लिपा-पोती किया जा सके।

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