Monday, December 6, 2010

एक आम आदमी (श्रधांजलि)


हाँ उनका नाम राम ईश्वर ही था लेकिन हम लोग उनको मुंशी जी कहते थे यही कोई उनकी उम्र साठ, पैसठ साल कि होगी। वो अपने काम के प्रति ईमानदार थे तथा अपने मालिक के प्रति बहुत ही वफादार थे। जिस माकन में मै किराया पर रहता हूँ उसी मकान में वो दरवान का काम करते थे। पिछले तीस सालों से वो मकान मालिक अशोक सिंह के साथ रह रहे थे क्यों कि मकान मालिक अशोक सिंह पहले ठीकेदारी का काम करते थे तब से राम ईश्वर उनके यहाँ मुंशी का काम करते थे। जिस मकान में मै किराये पर रहता हूँ वह मकान मुंशी जी के ही देख रेख में बनी थी और फिर उसी मकान में मुंशी जी दरवान का काम करने लगे थे। मकान मालिक भी उनके रहने के लिए चौथे माले के पानी टंकी के ऊपर एक कमरा बनवा दिए थे उसी में मुंशी जी रहते थे तथा घर कि रखवाली भी करते थे। उनकी दिनचर्या में शामिल था सुबह पांच बजे उठ जाना तथा नित्य क्रियावों से निवृत होकर घर का मेन गेट खोलना तथा हाथ में एक छोला लेकर फुल तोड़ने के लिए घर से निकल जाना, फुल तोड़ कर आने के बाद दस बारह भागो में कुड़ी बना कर प्लास्टिक के थैले में रख कर जितने भी किरायेदार थे सभी के दरवाजे पर थैले को टांगना तथा काल बेल को दबाना ताकि घर वाले को यह जानकारी हो जाये कि मुंशी जी फुल का थैला दरवाजे पर टांग दिए है। हाँ यह अलग बात है कि उस फुल के बदले में पचास रुपया माहवारी वो किरायेदार से लेते थे। किसी के कहे हुए काम को वो अवश्य करते थे कभी ना नहीं कहते थे। बहुत ही सादा जीवन उनका था। वो अपना खाना लकड़ी के चूल्हे पर खुद ही बनाते थे। वो अकेले ही रहते थे इधर कुछ दिनों से उनकी उनकी बेटी जो मात्र नव या दस साल कि होगी साथ रहती थी। गाँव में उनकी पत्नी दो बेटा तथा तीन बेटियां रहती थी। बड़े बेटे कि शादी कर दिए थे जो अपने परिवार के साथ अलग रहता था एक बेटा तथा तीन बेटियां अभी छोटी है और मुंशी जी पर परिवार कि जिम्मेवारी बहुत ज्यादा थी शायद इसी चिंता में मुंशी जी का स्वास्थ दिनों दिन गिरता ही जा रहा था लेकिन वो इतने स्वाभिमानी थे कि अपने दुःख को वो किसी से जाहिर नहीं करते थे। अभी पिछले बीस दिनों पहले उनको कुत्ता ने काट दिया था वो दौड़े हुए आये और मेरे घर का काल बेल दबाये मैंने दरवाजा खोला और कुछ पूछता उसके पहले ही वो बोले मुझे कुत्ता काट लिया है, मै अपनी पत्नी से कहा मुंशी जी को कुत्ता काट लिया है डीटाल लगाकर धो दो और अशोक सिंह को खबर कर दो, ऐसा ही हुआ फिर अशोक सिंह आये और मुंशी जी को अपने गाड़ी में बैठाकर डाक्टर के पास लेकर गए। फिर सुई दवा दिलाकर कुत्ता के काटे हुए जगह पर बैडेज करा कर लाये तथा मुंशी जी को हिदायत दिए कि आपको कही आना-जाना नहीं है आप आराम कीजिये। पहला दिन तो मुंशी जी ने कोई काम नहीं किये लेकिन दुसरे दिन से फिर अपनी दिनचर्या में लग गए। शायद यह उनकी गरीबी थी जो कुत्ता काटने कि स्थिति में भी अपना काम कर रहे थे। इधर २६ या २७ दिसंबर को मुशी जी को ठंड लग गई थी क्यों कि सुबह पांच बजे मुंशी जी फुल तोड़ने के लिए घर से बहार निकल जाते थे शायद सुबह में ही उनको ठंड लग गई होगी। उनको मालूम तब हुआ जब उनको तेज बुखार हो गया तथा एक दो बार कय कर दिए। शयद वो अपने मालिक से कहे होंगे उन्हों ने कुछ दवाइयां दिलवा दी थी वो दवाइयां खा लिए, मुंशी जी जो बराबर नीचे सोते थे २७ दिसम्बर कि रात को वो ऊपर छत पर सोने चले गये। उनके मालिक कहे भी आपकी तबियत ख़राब है आप नीचे ही सोइए लेकिन पता नहीं क्यों वो ऊपर ही चले गए सोने के किये। अचानक २८ दिसंबर कि सुबह साढ़े पांच या छे बजे मेरे फ्लैट का काल बेल बजा और आवाज़ आई मुंशी जी को कुछ हो गया है ऊपर आइये। घबडाये से हम पति पत्नी ऊपर गए देखा सभी फ्लैट के लोग ऊपर में है तथा मुंशी जी छत पर खुले आसमान के नीचे चीत पड़े हुए थे। मुझे उनकी बीमारी कि जानकारी सिर्फ इतनी थी कि उनको हल्का बुखार लगा है इसलिए पूछा क्या हुआ मुंशी जी को, उनकी बच्ची बताई पेशाब करने के लिए रूम से निकले थे पेशाब करने के बाद गिर गए। हम सभी लोगो ने कहा इनको लेकर डाक्टर के पास चला जाय। उनको गाड़ी में लादकर हास्पिटल के लिए भागे। दो हास्पिटल में जो कि बड़ी हास्पिटल है इमरजेंसी में कोई डाक्टर नहीं मिला फिर तीसरे हास्पिटल में उनको लेकर हमलोग आये। यहाँ डाक्टर देख कर बोला अब ये नहीं रहे। यानि कि मुंशी जी कि मृत्यु हो गई थी। गाँव से उनका छोटा बेटा और पत्नी आये और मुंशी जी के पार्थिक शारीर को लेकर अपने गाँव चले गए।
एक आम आदमी कि मृत्यु हो गई। जो पूरी जिन्दगी दुसरे का काम करते हुए गुजार दी, अपने लिए अपने बच्चो के भविष्य के लिए कुछ भी नहीं किया था। उसके सामने उसकी पूरी जिम्मेदारियां और जबाबदेहियाँ पड़ी कि पड़ी रह गई और वो इस दुनियाँ से कूच कर गया। उसके तीन छोटी मासूम बच्चियाँ, बेटा और पत्नी सभी अनाथ हो गए। अब उसके बच्चो का क्या होगा ?
यह मेरी एक छोटी सी श्रधांजली है उस नेक ईमानदार और कर्मशील व्यक्ति को है जो झोपड़े में जिंदगी गुजारी, अपने बच्चो के भविष्य के लिए कुछ नहीं किया लेकिन अपने मालिक के लिए आलीशान महल खड़ा किया

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