Tuesday, July 20, 2010

बिहार कि विडंवना

बिहार... एक ऐसा प्रान्त जो अपनी बदनामी कि दाग लिए जी रहा है। शायद बिहार के लोंगो ने ही बिहार को इस स्थिति तक पहुँचाया है। आज बिहार पुरे भारत में अपनी बदनामी के लिए मशहूर है बल्कि दुसरे राज्यों में बिहारी कहलाना भी अपमान है, इसीलिए दुसरे राज्यों में बसे हुए बिहारी अपने को बिहारी कहने से हिचकते है। इससे बड़ी बिडम्बना और क्या हो सकती है बिहारी लोग दुसरे राज्यों में अपनी पहचान छिपाते है। आप भारत के किसी भी राज्य में जाएँ आपको ऑटो रिक्शा या रिक्शा चालक ज्यादातर बिहारी मिलेंगे, फैक्टरियों में काम करने वाले , बहुमंजिली इमारतो में काम करने वाले, होटलों में काम करने वाले, खेतों में काम करने वाले मजदूर ज्यादातर बिहार प्रान्त से ही है। अब दूसरी बात - आप उत्तर भारत के किसी भी राज्य, महाराष्ट या भारत के और राज्यों में जाइये वहां के जितने भी कॉलेज है चाहें वह इंजीनियरिंग, मेडिकल, एम् बी इत्यादि इत्यादि इन सभी कालेजों में बिहारी छात्रों कि संख्या ज्यादा मिलेगी। मतलब यह कि बिहार में रोजगार एवं कल-कारखाने नहीं होने के करण बिहारी लोग दुसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते है क्यों कि वहां उनको काम आसानी से मिल जाता है और मजदूरी भी भरपूर मिलती है। अब रही बिहारी छात्रों कि बात - तो छात्रों कि छमता के हिसाब से इंजीनियरिंग, मेडिकल, एम् बी इत्यादि इत्यादि कालेजों कि कमी के चलते यहाँ के छात्र दुसरे राज्यों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते है। जब ये लड़के अपनी पढाई समाप्त कर नौकरी में जाते है तो फिर बिहार आने से हिचकते है और ये उसी राज्य और शहर के बन कर रह जाते है। क्या बिहार के लोंगो ने कभी इस पर ध्यान दिया है ? शायद नहीं।
आज क्या करण है कि नौकरी करने वाले राज्यों का प्रतिशत निकला जाय तो बिहार उसमे अव्वल आएगा। क्यों कि यहाँ नौकरी करना या नौकर बनना मुख्य पेशा बन गया है। हम बिहारी लोग अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर (चाहे पढ़ाने में कितना भी खर्च क्यों ना हो) एक अच्छा नौकर बनाते है कभी उनको मालिक नहीं बनाते या मालिक बनने कि शिक्षा नहीं देते। क्या हम बिहारियों कि यह गलत सोंच नहीं है ? अगर हम अपने बच्चों को मालिक बनाने कि कोशिश करते तो शायद वो अपने ही राज्य में कल-कारखाने लगाते, जिससे कि बिहार के लोंगो को ज्यादा से ज्यादा रोज़गार मिलता तो फिर वो दुसरे राज्यों में क्यों जाते मेहनत मजदूरी करने के लिए। रही बात बिहारी छात्रों के लिए कॉलेज कि बात - आप उत्तर भारत के राज्यों महाराष्ट्र भारत के और राज्यों में जितने भी इंजीनियरिंग, मेडिकल, एम् बी इत्यादि कॉलेज है या तो वह किसी ऍम पी, मंत्री, राजनेता या उद्योग घराने का है, वहां के लोंगो को अपने राज्य से लगाव है इसलिए अपने राज्य में ही कॉलेज खोलें है, ताकि राज्य कि आमदनी बढ़ सके और लोंगो का जीवन स्तर ऊँचा हो लेकिन हमारे बिहार के राजनेता, मंत्री, एम् पी ऐसी नहीं सोंच नहीं रखते है पैसा या पॉवर आने पर वो अपनी एक अलग पार्टी बना लेते है ताकि वो सत्ता में या सत्ता के करीब रह सके इससे राज्य कि आमदनी तो नहीं बढ़ जाएगी या लोंगो को रोज़गार तो नहीं मिल जायेगा आज बिहार का पैसा उत्तर भारत के राज्यों और भारत के अन्य राज्यों को जा रहा है अगर बिहार में यह सभी सुविधा उपलब्ध होती तो यह पैसा बिहार के पास ही रहता बल्कि दुसरे राज्यों का पैसा भी बिहार में आता, और जब पैसे ज्यादा आता है तो रोज़गार के तरीके भी ज्यादा समझ में आने लगते है

2 comments:

honesty project democracy said...

बहुत ही अच्छी बात कही आपने बिहार के लोग चाहें तो कई अच्छे बिहार का निर्माण कर सकते हैं ,सरकारी सहायता व सामाजिक सहयोग अच्छे लोगों को नहीं मिलता है यह भी एक वजह है प्रतिभा पलायन का | मैं सितम्बर में बिहार आ रहा हूँ अगर संभव हुआ तो आप जैसे सही सोच जो बिहार को बदल सकता है से मिलने का प्रयास करूंगा |

honesty project democracy said...

अजय जी इस देश ने पिछले पांच सालो में जितना भ्रष्ट और बेशर्म मंत्रियों खासकर कृषि मंत्री शरद पवार को झेला है उतना कभी नहीं झेला था ,इसलिए इंसानियत की अवस्था और भी दर्दनाक होने के पूरे आसार हैं | अभी मैं सीतामढ़ी के सामाजिक जाँच से लौटा हूँ जिसमे मैंने पाया की संभावनाएं रोजगार की दिल्ली से ज्यादा है ग्रामीण इलाकों में बशर्ते सरकार ईमानदारी से सहायता करे |मैंने देखा की सुरसंड ब्लोक के भिट्ठा बाजार ग्राम में एक पोस्ट ग्रेजुएट इन्सान डेरी का कारोबार कर 17 जर्सी गाय को पालकर 30 से 40 हजार रुपया महिना कमा रहा है और बाहर के राज्यों महानगरों के जिन्दगी से कहीं ज्यादा सकून में है | उस व्यक्ति का नाम नरेश ठाकुर है ,उसने बताया की हम जब ऋण के लिए गये तो हमसे 40 % रिश्वत की मांग की गयी और कई चक्कर लगाने के बाद ऋण नहीं मिला ,तब जाकर हमने अपने बूते जमीन इत्यादि के सहारे रुपयों का जुगाड़ किया और अब ऐसे मुकाम पर हूँ ,नरेश ठाकुर ने बताया की बिना रिश्वत के ऋण मिले तो हम इस पूरे जिले में कम से कम एक हजार लोगों को अपने जैसा बनाकर आर्थिक रूप से मजबूत बना सकते हैं जिससे हमारे देश और समाज का विकाश होगा | मैं इस सिलसिले में सितम्बर में फिर सीतामढ़ी जाऊँगा और इसबार मेरा फोकस सिर्फ और सिर्फ नरेश ठाकुर जैसे लोगों को सहायता पहुँचाना होगा चाहे इसके लिए हमें पूरी व्यवस्था की खाल क्यों न उतारना परे | दरअसल जिलों में विकाश योजनाओं को ईमानदारी से लागू नहीं किया जाना ही देश के अन्य महानगरों की भीर व बिहार से प्रतिभा के पलायन का मूल कारण है | जरूरत है मिडिया व इमानदार समाज सेवकों के सम्बेदंशील लोगों को देश के दूर दराज जिलों के विकाश कार्यों की जाँच करने और जनता को भी जाँच के लिए प्रेरित करने की ,आशा है आप इस दिशा में काम जरूर करेंगे और अपने इमानदार साथियों से भी ऐसा करने को कहेंगे | गांवों की स्थिति सुधारी जा सकती है अगर जिला प्रशासन से उसकी जिम्मेवारियों के लिए कोई लड़ने वाला हो ....! आप जैसे लोग अगर निडर होकर हमारा साथ दें तो बिहार क्या पूरे देश को बदला जा सकता है ...