Saturday, August 20, 2011

बदलता समय

बचपन में मेरे दादा अक्शर एक बात कहते थे की तीन चीजे परदे के अन्दर रखनी चाहिए और वो तीन चीजे है



- नारी
- खान पान
- संपत्ति

अगर इन तीनो को परदे के बाहर कर दिया तो तुम अपनी शांति खो दोगे, शायद बचपन में यह बात समझ में नहीं आती थी लेकिन अब उनकी बाते मेरी समझ में आने लगी है।
आज हम अपने को समाज में बड़ा दिखने के लिए इन्ही तीन चीजो का तो सहारा लेते है, लेकिन बदले में पाते क्या है , अशांति , अपने को समाज में बड़ा रखने के लिए हमें तरह तरह के हथकन्डे अपनाने पड़ते है , बहुत जगह नहीं चाहते हुए भी समझौता करना पड़ता है, पहले तो मेरी मज़बूरी होती है बाद में मेरी आदत बन जाती है और फिर मै अपने स्तर से नीचे की तरफ गिरता ही जाता हूँ , गिरता ही जाता हूँ और नीचे गिर जाता हूँ
आज समाज में Crime का स्तर दिनों दिन ऊपर की तरफ बढ़ता जा रहा है, जाने या अनजाने ही सही लेकिन किया हुआ तो मेरा ही है, क्या हम यह सोचते है कि जो Crime का स्तर ऊपर कि तरफ बढ रहा है उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी है ? शायद नहीं , क्यों कि मैंने तो कोई गलती कि ही नहीं।
अफसोश यह गलती मैंने ही कि है लेकिन अनजाने में।
हमारे समाज के हायर क्लास एवं अपर मध्यम क्लास के लोग जाने अनजाने ही सही ये दिखावा दिखा कर उन गरीब लोगो के दबे हुए भावना को जगा दिया है जो अबतक सोया हुआ था। अब उनमे भी बड़ा बनने कि इक्छा जाग गई है लेकिन रास्ते वो गलत चुन लिए है, वो पढ़ कर हर चीज हासिल कर सकते है लेकिन उनके पास यह साधन नहीं है।

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