Monday, August 22, 2011

अन्ना का आन्दोलन

दिल्ली की सडकों पर उमड़ा जन सैलाब अद्भुत, अद्वितीय है, यह जन सैलाब दिल्ली की सडको से बढ़ते-बढ़ते अब भारत के हर राज्य, जिला और कस्बो तक बढ़ते जा रहा है, यह किसी को उम्मीद भी नहीं थी की एक छोटा सा आन्दोलन जन सैलाब में परिवर्तित हो जायेगा और भारत के कोने कोने तक पहुँच जायेगा ! इस आन्दोलन से जुड़ रहे लोग ऐसा नहीं की अनपढ़, गंवार और बेवकूफ लोग है बल्कि आज की पढ़ी लिखी २१वी सदी की जनता है वह अपना अच्छा और बुरा भली प्रकार समझती है और दिल्ली जैसे महानगर की जनता इतनी वेवकूफ नहीं है की भीड़ का हिस्सा बने, बल्कि इस आन्दोलन में जुड़े वह लोग है जो सरकार के प्रति उसके गलत नीतियों के प्रति, नीत नए उजागर हो रहे बड़े बड़े घोटाले, महंगाई इस सबसे त्रस्त लोग है उनकी कुंठित पड़ी भवनाएँ अब उबाल पर आ गई है, यह जन आक्रोश ही है जो सड़कों पर नज़र आने लगी है, इस जन सैलाब में शामिल वो लोग है जो अन्दर ही अन्दर कुंठित थे इनको कोई सही प्लेटफार्म नहीं मिल पा रहा था जहाँ अपनी भावनावों और बेवसी को व्यक्त कर सके, वह प्लेटफार्म अन्ना हजारे के आन्दोलन ने दिया जहाँ लोग टुकड़ियों में जुड़ने लगे टुकड़ियाँ भीड़ में तब्दील हुई और भीड़  जन-सैलाब में तब्दील होती चली गई अब तो यह जन-सैलाब भारत के हर शहरों से बढ़ता हुआ गाँव और कस्बो तक पहुँच गया है लेकिन हमारे सांसदों और मंत्रियों को यह समझ नहीं आ रहा है क्या गलत है और क्या सही है ! इसी जनता के द्वारा चुन कर ये सांसद बने है और उसी जनता की भावनावो को ये समझ नहीं पा रहे है, जनता अपना हक मांग रही है वह रिश्वतखोरी, दलाली, मंहगाई, बड़े-बड़े घोटाले इस सब से तंग आ चुकी है और उसके लिए एक  जन-लोकपाल कानून बनाने की बात कर रही है तो सरकार वह कानून या तो बनाना नहीं चाहती है या फिर अपने शर्तो पर बनाना चाहती है, शायद संसद में बैठे सांसद या सरकार में बैठे मंत्री यह भूल रहे है जनता की आवाज़ को दबा देंगे, जब भी कोई जन-आन्दोलन हुआ है तो उसका परिणाम भी आया है चाहे वह महात्मा गाँधी का आन्दोलन हो या जयप्रकाश नारायण का उसके परिणाम सामने आये है, महात्मा गाँधी और जयप्रकाश नारायण ने आन्दोलन में अपना नेत्रित्व प्रदान किये और लोग जुड़ते गए इसका परिणाम भी सामने आया एक ने देश को आज़ादी दिलाई तो दुसरे ने केंद्र ही नहीं राज्यों से भी उस कांग्रेस की सरकार को सत्ता विहीन कर दिया जो देश की आज़ादी के बाद से केंद्र और पूरे भारत पर आसन जमाये बैठे था ! अन्ना हजारे तो आन्दोलन को नेत्रित्व ही प्रदान कर रहे है जनता उनके आन्दोलन से अपने आप जुडती जा रही है, इस आन्दोलन का भी परिणाम सामने आएगा, क्यों की जनता में जीतनी शक्ति है वह किसी भी सरकार में नहीं होती है, इसलिए सत्ता में बैठे लोंगो को हवा की रुख का पहचान होना चाहिए, समय रहते चेत जाना चाहिए कही ऐसा ना हो की पांव तले धरती ही खिसक जाये !

1 comment:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

अब तो सिर्फ एक ही चिंता है, अन्ना की सेहत। विभिन्न चैनलों पर तर्क-कुतर्क करते लिपे-पुते चेहरों को देख घिन्न आती है। पहले उस इंसान की फिक्र होनी चाहिए जिसने अलख जगाई है, मुर्दों में दम फूंका है, जिसकी दहाड़ से चूहे बन अपने बिलों में छिपे बैठे हैं देश के भले का दम भरने वाले।