
अन्ना
टीम के सदस्यों को बदनाम करने कि चाल चल कर केंद्र में आसीन कांग्रेस कि
सरकार (कांग्रेस कि सरकार कहना इसलिए उपयुक्त है क्यों कि यूपीए कि सरकार
में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है तथा सभी मुख्य विभाग अगर कुछ को छोड़
दिया जाय तो कांग्रेस के पास ही है।) आखिर भारतीय जनता को क्या बताना चाहती
है ? क्या वह यह बताना चाहती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ वही व्यक्ति आवाज़
उठा सकता है जिसके पुरे जीवन में कभी किसी प्रकार का झूठा या सही कभी कोई
आरोप न लगे हों ? ऐसा व्यक्ति तो शायद मिलना मुश्किल ही होगा, क्यों कि वह
इंसान ही होगा, भगवान तो आयेगें नहीं, फिर वैसे इंसान को कहाँ तलाश किया
जाय। भगवान भी जब इंसान के रूप में इस मृत्युलोक में जन्म लिए है तो उन पर
भी आरोप लगे है चाहे त्रेतायुग में रामचंद्र रहे हो या द्वापरयुग में जन्मे
श्री कृष्ण। हम सभी तो कलयुग में जी रहे है जिसमे कल, बल और छल ही प्रमुख
है अब ऐसे कलयुग में हम कहाँ से वैसे इंसान को लाये जो ऊपर से नीचे तक साफ़,
सुथरा और स्वच्छ छवि का हो जो भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़
उठा सके और केंद्र में बैठी कांग्रेस कि सरकार उसका इतिहास, भूगोल खघालने
के बाद भी कोई नुक्ताचीनी न निकाल सके ? ऐसा इंसान कहाँ से लाया जाय ?
क्यों कि इस भौतिक युग में कांग्रेस जिस इंसान कि उम्मीद कर रही है वैसा
इंसान तो मिलना संभव नहीं है और अगर वैसा इंसान नहीं मिलेगा तो फिर
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने का हक भी नहीं बनता है, क्यों कि कांग्रेस
तो बार-बार यही कह रही है चाहे वो कांग्रेस के शिखंडी दिग्विजय सिंह से
कहवाये या कोई और प्रवक्ता से। दिग्विजय सिंह एक वरिष्ट कांग्रेसी नेता है
उनके बयानों को सुनकर लगता नहीं कि जो शब्द वो बोल रहे है वो शब्द उनके
अपने हो, आखिर कबतक ऐसे बयनो को बोल-बोल कर अपनी खिल्ली उडवाते रहेगें ? अब
तो लोग उनके बयानों को सुनना भी पसंद नहीं करते है।
आज अन्ना हजारे
जनता कि आवाज़ बन गए है क्या कांग्रेस या उसकी सहयोगी पार्टियाँ इन बातो को
नहीं समझती है या राजनीती कि कोई और खेल खेली जा रही है। जनता सरकार से
क्या मांग कर रही है, यही न कि लोकपाल कानून बनाया जाय, क्यों कि भारतीय
जनता भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त हो चुकी है इसलिए इसपर अंकुश लगाने के
लिए कानून बनाया जाय, वह अपनी चुनी हुई सरकार से लोकपाल कानून बनाने कि
मांग कर रही है और सरकार है कि जनता कि बात ही नहीं समझ रही है। केंद्र कि
सरकार क्या वह भारतीय जनता कि सहनशीलता देखना चाहती है या वह यह समझ रही है
कि अन्ना टीम को तोड़ दो फिर कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएगा।
शायद सरकार यह गलत सोंच रही है। कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री स्वर्गीय
इंदिरा गाँधी ने भी एक बार जनता कि आवाज़ दबाने के लिए पुरे देश में
इमरजेंसी लगा दी थी और विपच्छ के जितने भी नेता थे सभी को जेल में डाल दिया
गया था जिसका हस्र यह हुआ कि कांग्रेस को पुरे भारत से अपनी सत्ता से हाथ
धोना पड़ा था। समय रहते केंद्र कि सरकार को यह समझना चाहिए कि यह लड़ाई
अन्ना बनाम कांग्रेस नहीं है बल्कि जनता बनाम कांग्रेस है।
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