Friday, November 18, 2011

क्या यही लोकतंत्र है ?


भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि बहुमत के हिसाब से ही केंद्र या राज्य में अपनी सरकार बनाते है। सरकार का कार्य होता है वह राज्य या देश कि जनता के हितो का ध्यान रखे जैसे स्वतन्त्रता कि आज़ादी, अराजकता और मुनाफाखोरी देश में ना फैले, जनता कि जान और माल कि रक्छा, देश कि सीमाएं पूरी तरह चाक चौकस बंद हो ताकि बाहरी आक्रमण देश पर हो सके। अगर सरकार इन सभी कार्यो का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करती है तो वह एक लोकतान्त्रिक सरकार है और वह अपने जनता के विश्वासों पर खरा उतरती है।
लेकिन वर्तमान में केंद्र कि सरकार क्या इन सभी बातों पर ध्यान दे रही है ? शायद नहीं, अगर ध्यान देती तो आज देश में जीस हिसाब से महंगाई बढ रही है क्या वह अराजकता और मुनाफाखोरी नहीं है ? क्या उद्योगपतियों के हितो का ध्यान रखना और आम जनता के हितो का ध्यान रखना, क्या यह जनतंत्र है ? पेट्रोल के दामो में बेतहासा बढ़ोतरी कर सरकार जनता को क्या बताना चाहती है। पेट्रोल कम्पनियां जरा सा नुकसान में जाती है तो वह केंद्र सरकार पर दाम बढ़ाने का दबाव बनाने लगती है और केंद्र सरकार उनके दबाव में आकर दाम बढ़ाने कि अनुमति दे देती है क्या यह एक जनतांत्रिक सरकार है ? अगर जनतांत्रिक सरकार होती तो कंपनियों को यह हिदायत करती कि पेट्रोल का दाम नहीं बढेगा बल्कि कम्पनियाँ अपने खर्चे में कमियां लाये, लेकिन केंद्र कि वर्तमान सरकार जनता के हितो का ध्यान रख उद्योगपतियों का ध्यान रखी जिसका नतीजा हुआ कि पेट्रोल के दामो में बार-बार इजाफा होता गया और महंगाई भी उसी अनुपात में बढती गई। लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं, महंगाई बढती है तो बढे। केंद्र कि सरकार ने प्रतिदिन ३२/- रुपया कमाने वाले को अमीर मानती है यानि गरीबी रेखा से ऊपर है वह आदमी लेकिन उस आदमी कि औकात इतनी भी नहीं है कि वह एक लीटर पेट्रोल खरीद सके ? इस देश का दुर्भाग्य ही है कि ३२/- रुपया कमाने वाला व्यक्ति अमीर तो है लेकिन एक लीटर पेट्रोल खरीदने कि उसकी हैसियत नहीं है। क्या यह सरकार कि गलत नीतियों का परिणाम नहीं है।
हमारे देश के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह एक कुशल राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे विद्वान्, अर्थशास्त्री और विचारक भी है। एक मजे हुए अर्थशास्त्री के रूप में उनकी ज्यादा पहचान है। अपने कुशल और ईमानदार छवि कि वज़ह से सभी राजनैतिक दलों में उनकी अच्छी साख है। लेकिन एक कुशल समाजसेवी नहीं है। वह देश कि अर्थव्यवस्था को ऊँचाइयों पर ले जा तो सकते है जिसका फायदा उद्योगपतियों और कुछ खास मुट्ठी भर लोगो को होगा। क्यों कि वह अर्थशास्त्री है और हर चीज में मुनाफा देखते है क्या देश में बढ़ रही गरीबी और महंगाई में भी मुनाफा ही देख रहे है ? देश कि जनता आज परेशान हाल है सौ रुपये में हम एक झोला सब्जी भी खरीद कर नहीं ला सकते और सरकार कहती है कि बत्तीस रुपया कमाने वाला व्यक्ति अमीर है। जनता के पैसो पर राज करने वाले सत्ता पर आसीन राजनेतावों जनता कि आवाज़ को पहचानो उसकी नब्ज को टटोलो जनता से तुम हो तुमसे जनता नहीं है उसके पैसे को लूटना बंद करो, महंगाई पर अंकुश लगाओ, देश में बढ़ रही मुनाफाखोरी और अराजकता पर रोक लगाओ, उद्योगपतियों पर भी अंकुश लगाओ वह उत्त्पादन पर ज्यादा मुनाफाखोरी ना करे। कही ऐसा ना हो कि जनता ही तुमको लूट ले क्यों कि भारतीय जनता कि सहनशीलता कि एक सीमा है कही ऐसा ना हो कि अपना खज़ाना भरने के चक्कर में तुम उस सीमा को पार कर जाओ जहाँ भारतीय जनता अपनी सहनशीलता खो दे। फिर क्या हस्र होगा, इतिहास इसका गवाह है।
हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जिनकी ईमानदारी कि कसमे खाई जा सकती है क्यों कि सभी राजनैतिक पार्टियों के लोग इनको ईमानदार ही कहते है। इन्ही के मंत्रिमंडल में आसीन भूतपूर्व संचार मंत्री .राजा ने 2G स्पेक्ट्रम घोटाल इतना बड़ा किया जो अभीतक के घोटालो में सरताज है। यह घोटल एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ का है जो देश कि आज़ादी के बाद से अभीतक के घोटालो में सबसे बड़ा घोटाला है। अभी श्री .राजा तिहाड़ जेल कि शोभा बढ़ा रहे है।
हमारे देश के भूतपूर्व खेल मंत्री श्री सुरेश कलमाड़ी जी कामनवेल्थ खेल में घोटालो का ऐसा खेल खेला जो सत्तर हजार करोड़ का था अब ये तिहाड़ जेल में कोई और खेल खेलने के मनसूबे तैयार कर रहे है।
महारास्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक चौव्हान ने तो वो कारनामे किये जो बे मिसाल है वो कारगिल के शहीदों के लिए बने आवास में ही उलट-फेर कर दिए। यानि कि मुर्दे के शारीर से ही कफ़न छीन लिए। अब ऐसे राजनेताओं से क्या उम्मीद कर सकते है और मनमोहन सिंह को कैसे ईमानदार कहा जा सकता है क्यों कि ये सभी घोटाले उनके नाक के नीचे हुई है।
ये राजनेता किस मिट्टी या धातु के बने है जो कितना भी खा ले है फिर भी पेट नहीं भरता है। इनकी तुलना अगर भिखारियों से कि जाय तो ज्यादा तार्किक लगता है, क्यों कि भिखारियों को आप कितना भी खिला दो लेकिन उनका पेट नहीं भरता, वही हाल हमारे राजनेताओं का है, और ऐसे ही नेता इस देश कि बाग़ डोर सम्हाले बैठे है।
अब हमारे देश कि सीमाएं कितनी चाक चौकस बंद है यह भी देख लीजिये १३ दिसम्बर २००१ को कुछ बन्दुकधारी आतंकवादी हमारे लोकतंत्र कि मंदिर संसद पर हमला कर देते है, गनीमत है कि हमारे सभी सांसद और मंत्री सही सलामत बच जाते है, हाँ कुछ पुलिसकर्मी जख्मी होते है और कुछ कि जान जाती है। इस घटना को अंजाम देने वाला मुज़रिम मिलने के बाद भी अभीतक सरकारी मेहमान बना जेल में रोटियां तोड़ रहा है।
अब भारत कि आर्थिक राजधानी मुंबई पर २६ नवम्बर २००८ को समुन्द्र के रास्ते आतंकवादी आते है और मुंबई महानगरी में AK-47 से निरीह और निहत्थे नागरिको पर गोलियों कि बौछार कर देते है। इस हमले में बहुत से निर्दोष मारे जाते है। क्या हमारी देश कि सीमाएं पूरी तरह चाक चौकस बंद है ? शायद नहीं। ऐसी आतंकवादी घटनाएँ हर साल इस देश में घटती है चाहे वो बम ब्लास्ट हो सीरियल ब्लास्ट हो या गोलियों कि बौछार हो मारे तो निरीह प्राणी ही जाते है और हमारा देश वैसे आतंकवादियों को पकड़ने के बाद भी सरकारी मेहमान बना कर जेलों में बंद रखती है और उसके हिफाज़त के लिए जनता का करोडो रुपया उस पर खर्च करती है क्या ऐसे आतंकवादियों को जो सरेआम कत्लेआम किये है क्या इनको भी सरेआम फांसी नहीं दे दी जानी चाहिए ? इनसे सहानभूति कैसी ?
अगर आप इन राजनेताओं से अच्छे कि उम्मीद करते है तो यह आपकी भूल है, यह देश इन मुट्ठी भर राजनेताओं का नहीं है बल्कि यह देश आपका अपना है इसे अच्छा या बुरा बनाना आपके हाथो में है। प्रजातंत्र में जनता अगर खुशहाल है तो देश चहुओर तरक्की करता है अगर जनता दुखी है तो देश पिछड़ता है

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