Sunday, September 4, 2011

जन-आन्दोलन


अन्ना हजारे का आन्दोलन एक सवाल खड़ा करता है भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में इतने बृहत् पैमाने पर जन-आन्दोलन क्यों सफल होता है। एक तरफ जनता खड़ी तो दूसरी तरफ सरकार। भारत को आज़ादी मिले ६४ साल ही हुआ है लेकिन इन ६४ सालों में ऐसा जन-आन्दोलन दो बार हो चूका है। पहला जन-आन्दोलन १९७४ में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेत्रित्व में हुआ था उस समय भी केंद्र में कांग्रेस पार्टी ही सत्ता में थी और दूसरा जन-आन्दोलन २०११ में अन्ना हजारे के नेत्रित्व में हुआ और इत्तफाकन इस बार भी केंद्र में कांग्रेस पार्टी ही सत्ता में है।
ऐसे जन-आन्दोलन क्यों सफल होते है:-
[१] जनता द्वारा चुने हुए जन-प्रतिनिधि अपने कार्यो को जनता के हितो में नहीं करते है जिसके कारण जनता के अन्दर आक्रोश बढ़ने लगता है जिसके कारण ऐसे जन-आन्दोलन उभरते है।
[२] लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अगर किसी एक पार्टी कि सरकार दो तीन चुनाव जीत कर लगातार सत्ता में रहती है तो वह अपनी मनमानी करने लगती है जिसका असर जनता पर पड़ता है। क्यों कि लगातार सत्ता में रहने वाली सरकार जनता के हितो का ख्याल नहीं रखती है यानि वह निरंकुस शासक कि तरह कार्य करने लगती है और वही पर जनता के अन्दर आक्रोश बढ़ने लगता है फिर वह आक्रोश जन-आन्दोलन का रूप ले लेता है।
पिछला चुनाव जीत कर जब कांग्रेस पार्टी केंद्र कि सत्ता में आई तो सबकुछ ठीक-ठाक था उसने कार्य भी अच्छा किये, भारत कि अर्थ-व्यवस्था को एक नई ऊंचाई दी, जनता को भी लगा कि सरकार देशहित में कार्य कर रही है इसलिए जनता दुसरे चुनाव में कांग्रेस के प्रति ज्यादा उत्सुकता दिखाई और इसके सांसदों कि संख्या पिछले चुनाव के वनिस्पत ज्यादा सांसद चुनाव जीत कर लोकसभा में आये। शायद जनता से यही चुक हुई जिसका फायदा कांग्रेस पार्टी ने उठाई।
दुसरे दौर में कांग्रेस पार्टी केंद्र कि सत्ता पर फिर काबिज़ हुई और उसके बाद महंगाई बे-लगाम बढती गई, सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया कि इस बढती महंगाई में जनता कैसे अपने जीवन को चला पाएंगी मध्यमवर्ग और नीचलावर्ग इस महंगाई में पीस ही गया लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठने के बजाय और नीचे ही गिरता चला गया। जो इस महंगाई का सामना नहीं कर पाए वो दुनियां से ही पलायन कर गए। इस महंगाई के दौर में अमीर और अमीर बना और गरीब और गरीब हुआ। यह सरकार के गलत नीतियों का ही परिणाम था।
इसी सरकार में कुछ इतने बड़े-बड़े घोटाले हुए जिसकी कल्पना भी आम जनता नहीं कर सकती है। 2G स्पैक्ट्रम घोटाल १७६३७९ करोड़ रूपये का , कामन वेल्थ गेम घोटाला यह ८००० करोड़ रुपये का , आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी घोटाला (कारगिल युद्ध में शहीद सैनिको के परिजनों के लिए तथा कारगिल के वीरों के लिए) और न जाने छोटे बड़े कितने घोटाले होंगे जो उजागर नहीं हो पाए है।
स्विट्जरलैंड के बैंक में सत्तर लाख करोड़ रुपया भारत का जो कालाधन के रूप में पड़ा है उसके लिए भी सरकार कोई पहल नहीं कर रही है ताकि उस रुपये को भारत लाकर देश को एक सम्प्पन राष्ट बनाया जा सके।
देश कि आर्थिक स्थिति सुधरी है लेकिन किसके लिए क्या गाँव में रहने वाला किसान जो पूरी जिंदगी खेतो में हल चला कर भी दो वक्त कि रोटियां नहीं जुटा पाता है अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी नहीं दे पाता है। वह मजदुर जो गावों में रहता है जो पूरी जिन्दगी मजदूरी करता है फिर भी कभी पेट भर खाना नहीं खा पाता है। उसे क्या मालूम कि देश तरक्की कर रहा है, क्यों कि उसके दिनचर्या में कोई तबदीली नहीं आई है जैसा वह कल था वैसा ही आज भी है।
लोकसभा और राज्यसभा में जितने भी सांसद है वो सभी करोडपती या अरबपती है (वो भले ही पहले गरीबी से आये हो लेकिन आज वो गरीब नहीं है ) ये गरीबो के बारे क्या सोंचेगे इनको तो कारपोरेट घराने से मतलब है और ये कार्पोरेट घराने के लिए काम भी करते है और उन्ही के हितो के लिए संसद में कानून भी बनाते है।
संसद में सच्चे समाजसेवी नेताओं कि संख्या कम होने लगी है जब कोई समाजसेवी नेता सांसद बनता है तो वह समाज कि हितो कि बात करता है या उनके लिए उनके हितो के लिए संसद में आवाज़ उठता है लेकिन अब चुनाव हाईटेक हो गया है। अब चुनाव जीतने के लिए ज्यादा पैसो कि जरुरत पड़ती है। अब उम्मीदवार ऐ सी रूम में बैठ कर चुनाव जीतने कि प्लानिंग करते है और चुनाव जीतते है। जब ये बेशुमार पैसे खर्च कर चुनाव जीतते है तो फिर गरीबो के बारे में क्यों सोंचेंगे ?
अब भारतीय राजनीत में अधिवक्ताओ कि संख्या तेजी से बढ़ने लगी है वर्तमान सरकार में ज्यादातर मंत्रिपद अधिवक्ता के ही हाथ में है साथ ही साथ विपच्छ में भी लोकसभा और राज्यसभा में विपच्छ के नेता पद पर अधिवक्ता ही विराजमान है। अब ये अधिवक्ता अपने केश के लिए उलटे सीधे गवाह खड़ा करते है सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर केश जीतते है। तो ये समाज का क्या भला कर सकते है ? माना ये पढ़े लिखे अच्छा वक्ता है कानून का ज्ञान इन्ही के पास है लेकिन यह जरुरी नहीं एक अच्छा पढ़ा लिखा व्यक्ति एक अच्छा राजनेता या समाजसेवक बन सके।
अन्ना हजारे का आन्दोलन कामयाब होने का मुख्य कारण यही है कि वर्तमान केंद्र में बैठी सरकार जनता के हितो का ख्याल नहीं किया अगर ख्याल किया होता तो इस तरह का आन्दोलन कभी कामयाब होता ही नहीं। आज जनता अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि तथा सरकार से उदासीन है। ऐसी नौबत क्यों आई इस पर सांसद और सरकार को मंथन करना चाहिए, कहाँ सरकार के कार्यो में चुक हुई जिसके चलते अन्ना हजारे का आन्दोलन कामयाब हुआ और सरकार को उनके मांगों के सामने झुकना पड़ा।

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