Friday, September 16, 2011

महंगाई क़ी एक और मार


                                            डरे हुए हम लोग सभी है मनमानी कर रही सरकार।
                                            बढ़ा
बढ़ा कर महंगाई को जीना कर दिया है दुश्वार
                                           ऐसा
जीना क्या जीना जहाँ मर मर के हर रोज जिए
                                          जिन्दा हो तो निकलो तुम फिर छीनो अपना अधिकार

एक बार फिर तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल कि कीमतों में ३.१४ रूपये का इजाफा कर मध्यवर्गीय लोगो कि परेशानियाँ बढ़ा दी है या ये कहे कि उनके मासिक बज़ट पर प्रहार किया है। हर बार तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम महंगे होने से पेट्रोल के दाम बढ़ते थे लेकिन इस बार पेट्रोल का दाम बढने का कारण दूसरा ही है। डालर के मुकाबले रूपये के कमज़ोर होने से कच्चे तेल का आयत महंगा पड़ने कि आड़ में पेट्रोल कि कीमतों में ३.१४ रुपए इजाफा किया गया है। पिछले वर्ष जून से अब तक पेट्रोल के दाम दस बार से ज्यादा बढ़ चुके है अगर बढ़ने कि रफ्तार यही रही तो इस साल के अंत तक पेट्रोल कि किमत १००/- रुपए प्रति लीटर तक पहुँच जायेगा। सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य पर से नियंत्रण मानो कंपनियों की मनमानी के लिए हटा लिया हो। जब मन में आया दाम बढ़ा दिया। कंपनियों के घाटे की चिंता तो सरकार को है। आम आदमी के दम निकलने की चिंता कौन करेगा ?
पेट्रोल की ज्यादा खपत मध्यम वर्ग में होता है। चाहे वो दोपहिया गाड़ी (मोटरसाईकिल, स्कूटर या स्कूटी) या तीन चक्के की गाड़ी ऑटो रिक्शा अगर वो चार चक्के की गाड़ी लेता है तो अधिकांश पेट्रोल माडल ही होता है।
क्या सरकार जनता की परेशानियाँ नहीं समझ रही है। पेट्रोल की कीमत बढने से महंगाई और बढ़ेगी, लोगों पर अतिरिक्त भोझ बढ़ता जायेगा। यह सरकार के हित में भी गलत ही होगा क्यों की जनता सरकार से दूरियां बढ़ाएगी। अगला चुनाव जीतना भी वर्तमान सरकार के लिए मुश्किल हो जायेगा। या कही सरकार यह तो नहीं सोंच रही है की पांच साल के लिए सत्ता जो हाथ में आई है इसमें जीतना लूटना हो लूट लो क्यों की अगला चुनाव तो हम जितने नहीं जा रहे है इसलिए महंगाई दर इतना ऊपर कर दो की अगले चुनाव के बाद जो सरकार चुन कर आएगी उसे मुसीबतों का सामना करना पड़े। फिर हमारे पास बहुत समय रहेगा नई सरकार को बदनाम करने के लिए और तबतक जनता हमारी गलतियों को भूल गई रहेगी। (यानि की पांच साल के अन्तराल के बाद सत्ता में आने का खेल शुरू होगा)
महंगाई का अगर आलम यही रहा तो लोग अन्दर ही अन्दर टूटते जायेगें (आक्रोशित होंगे) नतीजा यह होगा की लोग सडको पर फिर से उतरेगे और इस बार कोई अन्ना नहीं होंगे बल्कि जनता होगी सिर्फ आक्रोशित जनता जिसका नेत्रित्व जनता ही करेगी वैसे में हमारे मुट्ठी भर राजनेताओ का क्या होगा जो अपने को राजा समझ बैठे है।

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