Monday, April 5, 2010

किन्नर समाज


नर एवं नारी से परे इस समाज में एक और समाज है जिसे हम सभ्य समाज के लोग "किन्नर" के नाम से संबोधित करते है। यह शब्द संबोधित करता है कि यह लोग हमारे समाज के नहीं है, हमारे समाज से परे इनकी दुनिया अलग है,ये सभ्य समाज से काट दिए गए लोग है,हमारे सभ्य समाज में इनके लिए कोई स्थान नहीं है जब कि इनकी उत्पत्ति हमारे ही द्वारा हुई है। जब बच्चा पैदा लेता है तो समाज के लोगो कि पहली प्रतिक्रिया यह होती है जो बच्चा पैदा लिया है वह लड़का है या लड़की,जब दोनों में कोई नहीं होता यानी लिंग का बोध नहीं हो पाता तो हम समाज के लोग उसको किन्नर या हिजड़ा घोषित कर देते,माँ बाप अपने को कलंकित महसूस करने लगते है, क्यों कि हमारे समाज से परे एक ऐसा मानव पैदा लिया है जो ना नर है नहीं नारी वह हमारे वंश परंपरा को चला नहीं सकता है, इस लिए हमारे समाज में इसकी कोई आवश्क्त्या नहीं है, उस बच्चे के लिए माँ बाप के सिने में कोई ममता नहीं रहती और उस बच्चे को अपने से अलग करने के फिराक में रहते है, क्यों कि जन्म देने वाली माँ अपने को इस समाज में अपने को कलंकित महसूस करने लगाती है। तब वही किन्नर समाज उस बच्चे को अपनाता है, अपने ममता कि छावं में उस बच्चे का परवरिश करता है और उसे जीने के लिए नाच, गाना, अश्लील हरकते शिखाता है ताकि वो अपना जीवन जी सके। हम सभ्य लोगो के समाज में उनके लिए नहीं कोई स्कूल है जहाँ वह पड़ कर एक सभ्य नागरिक बन सके, न ही कॉलेज है जहाँ पढाई ख़त्म कर नौकरी कि तलाश कर सके और न ही हमारे समाज में उनके लिए कोई काम है जहा मेहनत मजदूरी कर अपने जीवन को जी सके, तो फिर वो कहाँ जाये? क्या उन्हें जीने का हक भी नहीं है, उनकी गलती क्या है? परमपिता परमात्मा से भी उपेक्षित, शारीरिक विकलांगता से ग्रसित यह इंसान,पुरुष और महिला वर्ग में न होने के कारण जानवरों से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर है,शायद यही एक वर्ग ऐसा है जिसे परिवार से लेकर बाज़ार में भी कहीं कार्य नहीं दिया जाता, पूरा समाज इन इंसानों की जो मज़ाक उड़ाता है वैसा जानवरों के साथ भी नहीं होता,क्या समाज को दिशा देने के लिए उनमे राजनितिक चेतना नहीं है? क्या वो वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजिनीअर और कलाकार नहीं बन सकते और तो और आर्मी में वो एक अच्छे सोल्जर बन सकते है ? यह सभ संभव है बशर्ते कि हमारा सभ्य समाज इन्हें अपनाये, लेकिन यह संभव नहीं है, क्यों कि समाज कि संरचना ही ऐशी कि गयी है। "किन्नर" एक ऐसा समाज, जिसे हम लोगो ने भीख मांग कर जीने पर मजबूर किया है, हमने उनकी हर वो सुविधाए छीन ली है जिसके कि वो हक़दार है। क्या हमने कभी सोंचा है कि जो पूरानी परंपरा चली आ रही है उसमे बदलाव लाये। यह "किन्नर" समाज सदियों से वहिस्कृत जीवन जीते आ रहे है " रामायण में यह लिखा हुआ है कि जब श्री रामचंद्र जी चौदह वर्षो के लिए वनवास जा रहे थे तो अयोध्या वासी श्री रामचंद्र जी को छोड़ने के लिए अयोध्या कि सीमा तक आये थे, जब श्री रामचंद्र जी अयोध्या कि सीमा से आगे बढ़ने लगे तो अयोध्या वाशियों को बोले कि नर और नारी अयोध्या के लिए प्रस्थान कर जाये क्यों कि अब मै जंगल के लिए प्रस्थान करुगा, सभी अयोध्या वासी अपने घर को चले गए, जब चौदह वर्षो बाद श्री रामचंद्र जी अयोध्या को लौटे तो अयोध्या कि सीमा पर पहले मौजूद कुछ लोगो को देखे तो पूछे आप लोग अयोध्या नहीं लौटे, तो उन लोगो ने कहा प्रभु आपने हमलोगों को कहाँ कहे लौटने के लिए आपने तो नर और नारी को कहा लौटने के लिए, हमलोग तो नर, नारी में से कोई नहीं है, इसलिए यही रुक गए। क्या प्रभु भी उनका उद्धार नहीं किये।

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