Saturday, November 27, 2010

काम को इनाम (बिहार चुनाव परिणाम)


बिहार विधान सभा चुनाव परिणाम में एनडीए को तीन चौथाई बहुमत का मिलना यह जताता है कि "जो सरकार काम करेगी वही राज करेगी"। पिचले पांच सालों में एनडीए कि सरकार ने बिहार में जो काम किया उसके एवज में बिहार के लोगों ने जातिवाद की रेखा को पार कर अपने मताधिकार का प्रयोग कर एक ऐसे गठबंधन पार्टी को पूर्ण जनादेश दिया जो पिचले पांच वर्षो में काम कर बिहार को जंगल राज से उबार एक ऐसे रास्ते पर अग्रसर किया जहाँ से बिहार की अपनी पहचान बनानी शुरू हुई। आज बिहार की जो गरिमा बनी है वह पिछले एनडीए सरकार की देन है।
अगर हम पिछले पांच वर्षों को छोड़ दें और उसके पीछे के पंद्रह वर्षों के अतीत में झांके तो एक बदहाल बिहार नज़र आता है। जहाँ उंच-नीच का वेदभाव, जाति-जाति में टकराव, नक्सलवाद का बोलबाला, फलता-फूलता अपहरण उद्योग, अपराधिक एवं राजनितिक सांठ-गाँठ, अपराधिक तत्वों का बोलबाला, ला एंड आडर का बुरा हाल, जर्जर सड़कें, सरकारी हस्पतालों का बुरा हाल, शिच्छा के स्तर का मटियामेट होना, बंद पड़े उद्योग धंधे, जीने का आधार ख़त्म (तभी तो हर तबके का पलायन हुआ बिहार से) यानि पूरी तरह बर्बाद बिहार नज़र आता है।
फिर आता है २००५ का बिहार विधान सभा चुनाव। धन्य हो चुनाव आयोग की टीम धन्य हो श्री के.जे.राव जिनकी सक्रियता के चलते बिहार में निष्पच्छ चुनाव हो सका और एनडीए की सरकार सत्ता में आ सकी। अगर चुनाव आयोग के पहल में कही भी थोड़ी सी भी त्रुटी होती तो फिर से आरजेडी की सरकार सत्ता पर काबिज़ होती और बिहार में फिर वही सब होता जो पिछले पंद्रह सालों तक होता रहा था।
बिहार विधान सभा चुनाव २००५ में एनडीए की सरकार श्री नितीश कुमार की अगुवाई में बनी। पूरी तरह से बर्बाद बिहार को एक नया आयाम देने के लिए नितीश कुमार ने कमर कस ली। उन्होंने बिहार के लिए कुछ सपने पाल रखे थे और फिर उन सपनो को साकार करने में जुट गए। वह पिछली सरकार की नीतियों पर न चल कर खुद की बनाई नीतियों पर चलना शुरू किया। जिसमे शामिल था बिहार में कानून का राज, ताकि लोग अमन चैन से जीवन बसर कर सके, सड़कें जो पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थी उसे ठीक करना, सरकारी हस्पतालों की जर्जर स्थिति से ऊपर उठाना, आधी आबादी (महिला) को उनका हक देना, शिच्छा के स्तर को ऊपर उठाना, बिहार में बाहरी उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए एक अच्छा माहौल बनाना, बिजली उत्पादन को बढ़ाना तथा आत्म निर्भर बनना, बिहार के लोगों को रोज़गार धंधे मुहैया करना (ताकि बिहारियों का पलायन रुक सके), उच्च शिच्छा के लिए बिहार में ज्यादा से ज्यादा कालेज एवं यूनिवर्सिटी का खुलवाना ताकि उच्च शिच्छा प्राप्त करने के लिए बिहार से बिहारी लड़कों का पलायन रुक सके।
श्री नितीश कुमार ने पिछले पांच वर्षो में अपने बनाये सभी नीतियों पर पूरी तरह अमल करते हुए एक पिछड़े राज्य को अग्रसर राज्य कि श्रेणी में लाये और बिहार विकाश के राह पर पूरी तरह दौड़ने के लिए तैयार हो गया है। इसीलिए बिहार कि जनता ने भी उम्मीद से ज्यादा जनादेश (विश्वाश) देकर श्री नितीश कुमार के हाथो में बिहार कि बाग डोर थमा दी क्यों कि अपने से ज्यादा उसे नितीश कुमार पर विश्वाश है।
अब मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार अपने गढ़े हुए सपनो का बिहार बनाने के लिए स्वतंत्र है क्यों कि उनके राह में अब विपच्छ भी नहीं है।

Wednesday, November 17, 2010

लालच बुरी बला (कौन बनेगा करोडपति)



सोनी टीवी पर रात्रि नव बजे सोमवार से वृहष्पतिवार तक महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा प्रस्तुत "कौन बनेगा करोडपति" का प्रसारण हो रहा है। इसमे हर सवाल का चार जबाब कम्प्यूटर पर दिखाए जाते है जिसमे से एक जबाब सही होता है, इन्ही सही जबाबों को देते हुए प्रतिभागी रकम दर रकम जीतते हुए आगे बढ़ते है और यह रकम हर सही जबाब के बाद दुगनी होती जाती है। खेल पांच करोड़ के रकम तक जाकर समाप्त हो जाती है। महानायक अमिताभ बच्चन कि प्रस्तुति में महानता झलकती है, वो हर प्रतिभागी को प्रोत्साहित करते नज़र आते है और ज्यादा से ज्यादा रकम प्रतिभागी को जीतते देखना चाहते है। तरह-तरह के लोग उनके सामने वाली हॉट सीट पर बैठते है और उनके द्वारा पूछे गए सवालों का जबाब देते है। इसी हॉट सीट पर मेरठ से आये प्रतिभागी "प्रशांत बातर" भी बैठते है और अमिताभ बच्चन द्वारा पूछे गए सवालों का सही जबाब देते हुए एक करोड़ कि राशी तक जीत जाते है। फिर आता है इस खेल का आखरी पांच करोड़ का जैकपॉट सवाल। इस खेल का रोमांचक पहलु।
अमिताभ बच्चन प्रशांत बातर से कहते है "अगर इस सवाल का सही जबाब आपको मालूम हो तब ही खेलिएगा, अगर जबाब नहीं मालूम हो तो खेल को बीच में छोड़ कर जा सकते है, क्यों कि आप एक करोड़ रुपये जीत चुके है" । शायद प्रशांत बातर अमिताभ बच्चन द्वारा कही हुई बातो पर पूरी तरह ध्यान नहीं देते है तभी तो वो अमिताभ जी से एक मिनट का समय मांगते है गणेश भगवान को ध्यान लगाने के लिए। अमिताभ जी उनको दो मिनट का समय देते है। गणेश जी को ध्यान लगाने के लिए। ध्यान ख़त्म होने के बाद प्रशांत बातर खेल को आगे खेलने का इक्छा जाहिर करते है और गेम खेलना शुरू करते है।
कौन बनेगा करोड़पति का आंखरी सवाल कंप्यूटर पर चार ज़बाब जिसमे से एक ज़बाब सही तीन गलत, प्रशांत बातर के पास एक आप्सन डबल डीप, अमित जी फिर कहते है अगर आपको सही ज़बाब मालूम हो तब ही खेलिएगा, लेकिन प्रशांत बातर डबल डीप का उपयोग करने के बावजूद भी सही ज़बाब नहीं दे पाते है और तीन लाख बीस हज़ार रुपया ही जीत पाते है। मतलब कि एक करोड़ रुपया जीत जाने के बाद भी प्रशांत बातर आंखरी सवाल का ज़बाब देते है जब कि उनको सही ज़बाब नहीं मालूम है अमिताभ बच्चन के बार-बार कहने पर भी वह ध्यान नहीं देते है। यह लालच कि पाराकाष्टा कही जाएगी या ना-समझी।
यह लालच ही है जो प्रशांत बातर के सोंचने समझने कि क्रिया पर पूरी तरह हावी हो गया और अच्छी-खासी जीती हुई रकम गँवा बैठे।
प्रशांत बातर के हार से हम सभी को एक सबक मिलती है " अति लालच बर्बादी का कारण"

Monday, November 15, 2010

छेत्रिय पार्टियों की चांदी ही चांदी



भारतीय राजनीत में छेत्रिय पार्टियों का घुसपैठ तेजी से बढ़ता जा रहा है जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड रहा है क्यों कि किसी भी राष्ट्रिय पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण सरकार बनाने के लिए उसे छेत्रिय पार्टियों से किसी भी स्तर पर समझौता करना पड़ता है चाहे वो केंद्र में मंत्री पद ही क्यों न हो? आज बहुत सी छोटी-छोटी छेत्रिय पार्टियों कि संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इन छेत्रिय पार्टियों का निर्माण वैसे लोगों ने किया है जो अति- महत्वाकानच्छी है तथा जनता में उनकी पैठ है। वो राज्य में अपनी सरकार किसी भी सूरत में बना तो लेते है लेकिन केंद्र में वो पंद्रह, बीस या पच्चीस सांसद ही भेज पाते है, नतीजा वही होता है कि कोई भी राष्ट्रिय पार्टी सरकार बनाने भर बहुमत नहीं जुटा पाती है जिसके चलते छेत्रिय पार्टियों से हाथ मिलनी पड़ती है या यूँ कंहे कि छेत्रिय पार्टियाँ केंद्र कि सत्ता में अति महत्त्वपूर्ण पद पाने के लिए ब्लैक-मेलिंग शुरू कर देती है। एन-केन-प्राकेन किसी भी तरह मंत्री पद हांसिल करने के बाद जनता के पैसों कि लूट शुरू होती है। ये छेत्रिय पार्टियाँ समाज सेवा या देश को आगे बढ़ाने कि भावना से पार्टी का निर्माण नहीं करते बल्कि इसके पीछे एक ही मकसद होता है कि इतने सांसद जीत जाएँ जिससे केंद्र में सरकार बनाने में सहयोग कर सकें और मंत्री पद मिले फिर तो जनता के पैसों को लूटना ही है और अगर चोरी पकड़ी भी जाती है या मंत्री पद छोड़नी भी पड़ती है तो सरकार को अल्प-मत में तो ला ही देंगे, मतलब "चोरी भी और सीनाजोरी भी" । यह छेत्रिय पार्टियाँ अब ब्लैक-मेलरों, चोरों और उच्चकों कि पार्टियाँ बनती जा रही है और इसमें तमाम वैसे लोग जुड़े है जो जनता के खजाने कि चाभी हांसिल करना चाहते है।
भारत कि आज़ादी के बाद से केंद्र और राज्य में कांग्रेस पार्टी कि सरकार ज्यादातर सत्ता में रही है और शायद इसकी गलत नीतियों के कारण ही छेत्रिय पार्टियों का जन्म हुआ। पहले तो यह छेत्रिय पार्टियाँ भारत के दबे कुचले गरीब लोगों कि आवाज़ बनी तथा जनता का भी भरपूर समर्थन इन छेत्रिय पार्टियों को मिला जिसके चलते ये सत्ता कि सीढियाँ चढ़ते गए। सत्ता में आने के बाद पद,पावर और पैसा तीनो मिला। शायद पद,पावर और पैसा ये तीनो मिलते ही छेत्रिय पार्टिया दिशाहीन हो गई और सत्ता के खेल के ये माहिर खिलाडी बनते गए जो किसी भी रूप में सत्ता के करीब रहना इनके फितरत में शामिल होता गया। सत्ता के करीब रहने के लिए ढेर सारे पैसो कि जरुरत पड़ती है इसलिए मंत्री पद मिलते ही ये जनता के पैसो को लूटना शुरू कर देते है। खुदा ना खास्ता अगर चोरी पकड़ी भी जाती है तो इनके समर्थन में वही बड़ी सत्ता धारी पार्टी खड़ी हो जाती है, क्यों कि ये मंत्री भी तो उसी के सरकार में है और यही शुरू होता है पद का दुरूपयोग।
आज केंद्र कि सरकार में जनता के पैसो का कैसे चुना लगाया जा रहा है इसके मिसाल है दूर संचार मंत्री ऐ राजा। जिन्हों ने टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला में जनता के १.७६ लाख करोड़ रूपया का चुना लगाये है तथा इन पर ७० हजार करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप है। ऐ राजा छेत्रिय पार्टी द्रमुक से सांसद है तथा जिसके संचालक एम्.करूणानिधि है। केंद्र में कांग्रेस पार्टी कि सरकार है और ऐ राजा इन्ही कि सरकार में दूर संचार मंत्री है। कांग्रेस कि महानता देखिये कि अपने पद का दुरूपयोग करने के बाद भी ऐ राजा मंत्री पद त्यागने को तैयार नहीं थे और कांग्रेस भी उनपर दबाव नहीं डाल पा रही थी क्यों कि द्रमुक के समर्थ से ही केंद्र कि सत्ता में कांग्रेस बैठी है और अगर द्रमुक अपना समर्थन वापस ले लेती तो कांग्रेस अल्प-मत में आ जाती, इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस अध्यच्छ श्रीमती सोनिया गाँधी तथा वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने रविवार सुबह राजा मामले पर उपजे संकट पर गहन मंत्रणा कि थी और अपने महानता का परिचय देते हुए कांग्रेसी वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने एम्.करूणानिधि से बात कि और स्पस्ट तौर पर बता दिया कि अब पानी सर के ऊपर बह रहा है इसलिए राजा को मंत्रिमंडल में बनाये नहीं रखा जा सकता है इसलिए राजा अपने पद से इस्तीफा दे और यह दूर संचार विभाग आप ही के सुपुर्द करता हूँ राजा कि जगह किसी और को यह मंत्री पद दे दे ताकि केंद्र सरकार पर आये इस संकट को दूर किया जा सके। धन्य हो एम्.करूणानिधि का जिनके कहने पर राजा ने मंत्री पद से त्यागपत्र दिए। मतलब जो घोटाला हुआ है उसे लिपा-पोती किया जा सके।

Tuesday, November 9, 2010

मतगणना बाद बिहार कि किस्मत का फैसला

मतगणना के बाद बिहार कि किस्मत का फैसला आने वाला चुनाव परिणाम तय करेगा। क्यों कि बिहार में दो ही पार्टियों के बीच सीधा संघर्ष है।
१- एन डी ए जिसमे जनता दल यु और बीजेपी का गटबंधन है।
२- आरजेडी और लोजपा का गटबंधन है।
कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर रहेगी और वह बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी।
बिहार विधान सभा चुनाव २०१० विकाश बनाम जातिवाद का सीधा संघर्ष है। चुनाव परिणाम आने के बाद ही यह तय होगा कि बिहार में विकाश कि जीत हुई या जातिवाद कि।
अगर विकाश कि जीत होती है तो एन डी ए कि सरकार फिर से सत्ता में आएगी और पिछले पांच सालो में जो विकाश कार्य हुए है वह और आगे बढेगा तथा बाहरी उद्योगपतियों का आने का रास्ता प्रसस्त होगा। तब अगले पाँच साल में बिजली कि समस्या, रोजगार कि समस्या, विद्यालय एवं महाविद्यालय कि समस्या, सरकारी हस्पतालों कि समस्या, गाँव-गाँव तक सड़के पहुँचाने कि समस्या, ला एंड ऑडर और दुरुस्त करने कि समस्या तथा आवागमन के रास्ते को और सुचारू गति प्रदान करने कि समस्या से बिहार को पूरी तरह से न भी सही लेकिन निजाद मिलेगी।

अगर आरजेडी और लोजपा कि सरकार बनती है तो जातिवाद कि जीत होगी। शुरू के दौर में सब कुछ ढहर सा जायेगा और लोग सरकार कि नीतियों का आकलन करेंगे, शायद इस आकलन में डेढ़ या दो साल का समय लग जाये। अगर सरकार कि नीतियाँ जनता के प्रति, राज्य के प्रति, विकाश के प्रति माकूल रहा तो फिर जनता लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के प्रति अपने विश्वास को बना पायेगी। अगर लालू प्रसाद और रामविलास पासवान जनता को जो उम्मीदे दिए है उस पर सही नहीं उतरते है तो यह लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के लिए आंखरी चुनाव साबित होगा। पिछले पंद्रह साल तक आरजेडी कि सरकार बिहार कि सत्ता में रही है लेकिन बिहार को कोई दिशा नहीं दे पाई थी बल्कि इनके शासन-काल में बिहार कि दशा और ख़राब हुई। इस चुनाव में अगर लालू प्रसाद और रामविलास पासवान कि पार्टी बिहार कि सत्ता में आती है तो शायद अपने पिछले गलतियों से सबक लेते हुए आगे विकाश के कार्यों पर ध्यान देंगे तथा बिहार को एक सही दिशा देंगे।
आज़ादी के बाद से बिहार कि सत्ता चालीस वर्षो तक कांग्रेस के हाथ में रही लेकिन विकाश के नाम पर बिहार बाटम लाइन पर रहा और बिहार में जो विकाश होना चाहिए वह नहीं हुआ। कांग्रेस के शासन से त्रस्त होकर यहाँ कि जनता श्री लालू प्रसाद के पक्छ में अपना जनादेश दिया। लालू प्रसाद पंद्रह साल तक बिहार कि सत्ता में रहे लेकिन इन्हों ने भी बिहार के विकाश पर कोई ध्यान नहीं दिया, बल्कि इनके शासन काल में बिहार कि स्थिति और ख़राब हुई। लालू प्रसाद के शासन से त्रस्त होकर बिहार कि जनता एनडीए (जनता दल यु + बीजेपी) को अपना जनादेश दिया। बिहार में एनडीए कि सरकार सत्ता में आई और मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार बने। सत्ता में आने के साथ ही इन्हों ने बिहार के ला एंड ऑडर को दुरुस्त किया, कानून का राज कायम होने से यहाँ के वाशियों को सकून मिला। फिर उन्हों ने पूरी तरह बर्बाद हो गई बिहार कि सड़कों पर ध्यान दिया, सड़कें बहुत हद तक अच्छी हुई तथा कुछ नई सड़कें भी बनी। जजर हालत में पहुँच चुकी सरकारी हस्पतालों को बहुत हद तक ठीक किया तथा डाक्टरों कि उपस्थिति अनिवार्य हुई जिससे मरीजों कि तायदात में वृद्धि हुई साथ ही मुफ्त कि दवाएं भी मिलने लगी। बिहार के स्कूलों में लड़के लड़कियों कि संख्या में कुछ ज्यादा ही वृद्धि हुई क्यों कि सरकार के तरफ से मुफ्त में साईकिल एवं स्कुल यूनिफार्म बांटे गए।

सरकार किसी कि भी बने बिहार कि समस्याओं से उसे रु-बरु होना पड़ेगा और उसके लिए पहल करनी पड़ेगी :- ला-एंड- आडर का और दुरुस्त होना, विद्यालय, महाविद्यालय को बहुतायात में खोलना पड़ेगा ताकि बिहारी बच्चे उच्च शिक्झा के लिए दुसरे राज्यों में न जाएँ। बिजली कि समस्या से बिहार को उबारना पड़ेगा ताकि कल-कारखाने खुल सके और लोंगो को रोजगार मुहैया हो सके। कृषि को उद्योग का दर्जा देना पड़ेगा जिससे किसान संपन्न हो सके और मजदूरों का पलायन रुक सके। सड़कें गाँव-गाँव तक बनानी पड़ेगी ताकि लोंगों का आवा-गमन सुचारू रूप से हो सके। उत्तर बिहार में हर साल जो बाढ़ के रूप में कहर आता है और गाँव का गाँव उस बाढ़ में बह जाता है उस बाढ़ के पानी को रोकने के लिए डैम बनवाने पड़ेंगे जिससे पन-बिजली का उत्पादन भी होगा और बाढ़ का पानी खेंतो में सिचाई के काम भी आएगा। गाँव-गाँव तक सरकारी हस्पताल खोलने होंगे ताकि गाँव का कोई भी व्यक्ति बिना इलाज के न मर सके।
बिहार में जब रोजगार मिलने लगेगा तो लोंगो का पलायन अपने-आप रुक जायेगा, हर माह जो करोडो रुपये दुसरे राज्यों को चले जाते है उच्च शिझा के नाम पर वह पैसा बिहार में ही रहेगा, बिहार में सम्पन्नता आएगी, बिहार आत्म निर्भर बनेगा, मावोवाद भी धीरे-धीरे ख़त्म हो जायेगा तथा मावोवादी भी आम लोगों कि तरह जिंदगी बसर करने लगेंगे। यह सब संभव है बसरते कि इस राज्य के बनने वाले मुखिया इन बातो पर अमल करें।