Friday, June 25, 2010

समय: वोट कि राजनीत

समय: वोट कि राजनीत

वोट कि राजनीत

देश को आज़ादी मिले आज ६२ साल हो गया लेकिन मुस्लिम समुदाई आज भी अल्प-संख्यक ही है अगर धर्म के नाम पर ही जनसँख्या कि गड़ना करनी है तो भारत में हिन्दू सबसे ज्यादा है उनकी संख्या - ८२७५७८८६८ जो पूरी जनसँख्या का ८०.५% होता है जनसँख्या में मुस्लिम समुदाई भारत में दुसरे स्थान पर , उसकी जनसँख्या - १३८१८८२४० है जो 1३.४% है, इशाई धर्म कि जनसँख्या - २४०८००१६ जो २.३% है , सिख धर्म कि जनसँख्या - १९२१५७३० जो १.९% है , बौध धर्म कि जनसँख्या - ७९५५२०७ जो ०.८% है , ये गड़ना २००१ कि है उसके बाद कोई गड़ना नहीं हुई है। अब जो गड़ना होने वाली है वह जाती के आधार पर होगी तब कुछ अलग परिणाम सामने आएंगे।आज़ादी के बाद से आज तक सभी राजनितिक पार्टियाँ मुस्लिम समुदाई को अल्प-संख्यक मानती आ रही है अगर ये अल्प-संख्यक है तो क्या केंद्र में या फिर राज्य में जिस भी पार्टी कि सरकार हो क्या वो मुसलमानों को बहुसंख्यक बनाने के लिए कोई संवैधानिक नियम बनायें है या उनको कोई अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं जिससे कि अपनी संख्या को बढा सकें, शायद नहीं ...तो फिर ये राजनितिक पार्टियाँ मुसलमानों को इसलिए अल्प-संख्यक कहती है ताकि उनका वोट उन्हें मिल सके। आंखिर इन्हें कबतक छला जायेगा, मुसलमान इसी देश के है वो किसी दुसरे मुल्क से नहीं आयें है। तो फिर यह दोहरी निति क्यों अपनाई जाती है। केवल वोट कि राजनीति करने से अल्प-संख्यकों का उद्धार नहीं हो सकता है इसके लिए सरकार को पहल करनी पड़ेगी मुसलमानों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए। जिस देश में एक धर्म को मानने वाले लोग ८०% से ज्यादा है वहां पर दुसरे धर्म के लोग चाह कर भी उस प्रतिशत कि बराबरी नहीं कर सकते हैं , क्यों कि प्रकृति के विपरित कोई जा ही नहीं सकता है। तो फिर ये खेल खेलना बंद करे राजनितिक पार्टियाँ , और मुस्लिम समुदाय को बार-बार अल्प-संख्यक कहकर अपमानित नहीं करे।

समय: संबिधान में बदलाव करो

समय: संबिधान में बदलाव करो

संबिधान में बदलाव करो


भारत का संविधान आज़ादी के बाद लिखी गई थी उस वक़्त देश में साक्षर लोगों कि संख्या कम थी इसलिए अनपढ़ और गवांर लोगों को भी विधान सभा या संसद का चुनाव लड़ने के लिए योग्य माना जाता था,ये तब कि बात है जब १९४७ में अंग्रेज भारत छोड़े थे उस समय १२% साक्षरता देश में थी इसलिए संवैधानिक तौर पर सभी लोग योग्य माने गए थे लेकिन आज हमारे देश में साक्षर लोगों कि संख्या ७६.९% है,और आज भी अनपढ़ गवांर लोगों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है या ये कहे कि संवैधानिक तौर पर योग्य है। अब सवाल यह उढ़ता है कि ये अनपढ़ और जाहिल लोग विधान सभा या संसद में जाकर क्या करेंगे, केवल हल्ला करेंगे,क्यों कि संवैधानिक ज्ञान तो इनके पास होती नहीं है जो कि देश कि राजनितिक चर्चा में भाग ले सके, तब क्यों नहीं ऐसे लोगों को संवैधानिक तौर पर टिकट देना बंद कर दिया जाय ?

अब जरुरी हो गया है कि संविधान में एक संशोधन हो और चुनाव लड़ने का वही अधिकारी होंगे जो कम से कम बी.ऐ.तक कि पढाई पूरी कि हो साथ ही वोट देने का उसे ही अधिकार होगा जो कम से कम मैट्रिक कि परीक्षा पास कि हो।

अगर हमारे सांसदों को जरा भी देश के प्रति लगाव होगा तो वो संविधान में संशोधन के पक्छ में एक मत होंगे और इस तरह के संशोधन के बारे में जरुर सोंचेंगे , हाँ यह जरुरी है कि इस तरह वोटो कि संख्या कम हो जाएगी और छोटभैये राजनीतिज्ञों कि दाल नहीं गलेगी , लेकिन यह भी सही होगा कि अच्छे राजनेता संसद में जायेंगे। जहाँ तक राज्य स्तरीय पार्टी जो बरसाती मेढक कि तरह पुरे देश में फैली है उसकी भी संख्या कम होगी और केंद्र में मिली-जुली सरकार बनाने का सपना भी कम होगा साथ ही कुर्सी के लिए ब्लैक मेलिंग कम होगी।

Tuesday, June 22, 2010

रंग बदलती राजनीत

इस फोटो ने भूचाल मचाया , राजनीती का हाल बताया।
राजनीती में सभी है बन्दर, बचकर रहना ऐ कलंदर।।
आज का राजनीत या राजनीतिज्ञ बड़ी तेजी से रंग बदलते जा रहे है। राजनिती में जिनकी छवि साफ सुथरी है अगर वो भी रंग बदलते है तो एक आम राजनीतिज्ञ में और खास राजनीतिज्ञ में क्या फर्क रह जाता है ? फर्क पड़ता है जनता पर , उसका विश्वाश टूटता है जो आम जनता कि उम्मीदे है वो टूटती है। जनता के दिलो-दिमाग में एक छवि जो बन जाती है वह खंडित होती है, क्या अच्छे राजनीतिज्ञ इन बातों को नहीं समझते है ? तो फिर ऐसी ओछी हरकत क्यों करते है ? क्या वोट कि राजनीत के किये हमारी कोई मर्यादा नहीं है ? भारत एक जनतांत्रिक देश है, जनता के द्वारा चुने हुए राजनेता अगर जनता के भला के लिए कार्य करते हैं तो उनको जनता दुबारा चुनाव में विजय श्री दिलाती है, डर तो उनको होता है जो पांच साल तक सत्ता में रहते है पर जनता के लिए कोई काम नहीं करते है और वो वोट कि राजनीत के लिए तिगरम करते है। हिन्दू या मुस्लिम हम सभी भारतीय है, इस देश में जितना हिन्दू का अधिकार है उतना ही मुस्लिम का भी अधिकार है तो फिर बार-बार यह जताने कि क्या जरुरत है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक है और हिन्दू बहुसंख्यक है।
कृपया इस ओछी राजनीत को बंद किया जाय और एक साफ-सुथरी राजनीत कि शुरुआत किया जाय।
क्यों कि ................. यह पब्लिक है सब जानती है ।

Sunday, June 13, 2010

टूटता तिलस्म

मेरा उनसे कोई खून का रिश्ता नहीं था फिर भी मै उनसे बराबर मिलता था घंटो मै उनसे बातें करता था उनको भी अच्छा लगता था मझसे बातें करना। मेरा उनसे एक आत्मिक लगाव हो गया था, वो तक़रीबन ६५ या ६८ साल के होंगे। उनके दो लड़के थे एक विदेश में रहता था और एक भारत के ही महानगर में नौकरी करता था, बीच-बीच में लड़के आते थे अपने माता-पिता से मिलकर फिर वो चले जाते थे। जिस बुजुर्ग सज्जन से मुझे लगाव था उनको किडनी का प्राब्लम था वो महीने में चार या पांच बार डायलोसिश के लिए हस्पताल जाते थे उनकी पूरी जिंदगी करीब-करीब दवा पर ही टिकी थी, वो जब भी हस्पताल से आते थे तो मुझे जरुर फोन करते थे अपने परेशानियों को बताते थे कभी बहुत बेचैन होते तो मुझे बुला लेते थे। मुझसे घंटो बातें करते, उनके बातों में जिंदगी की सच्चाई नज़र आती थी, वो हमेशा यह बात कहते थे "अजय पहले हमारे बुजुर्ग अपनी बेटी का कन्यादान करते थे लेकिन आज हम अपने बेटे का ही दान कर देते हैं , हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाते है अच्छे से अच्छे कालेज में उच्च शिक्षा के लिए भेजते है पढने के बाद वो नौकरी में जाते है फिर उनकी हम शादी कराते है, शादी के बाद बच्चे पराये हो जाते है शायद उनकी खुद की जिंदगी अच्छी लगने लगती है और माता-पिता की जिंदगी से उनको कोई खास लगाव नहीं रह जाता है, आज-कल के बच्चे बस... एक रिश्ते को निभाते है।" उनकी बातों में दर्द था मै यह महशुस करता था, शायद उनके बच्चे अपनी जिम्मेवारी को सही तरीके से नहीं निभा पा रहे थे, तभी उनके दिल में ऐसी बाते थी। वो सज्जन अपनी परेशानियाँ तो नहीं बताते थे लेकिन बातों ही बातों में जीवन की सच्चाई से रूबरू जरुर करा देते थे। वो बराबर यह बात कहते थे ...जिंदगी हाथो से धीरे-धीरे फिशलती जा रही है मुझमे इतनी शक्ति नहीं है की जाती हुई जिन्दगी को पकड़ संकू ... शायद धीरे-धीरे मौत के आगोश में जा रहा हूँ । उनमे जीने की लालसा थी लेकिन स्वास्थ उनका साथ नहीं दे रहा था क्यों कि वो अक्सर यह कहते थे कि मै जीना चाहता हूँ।
उसी दरमियान मै अपने निजी कामो से बाहर चला गया था तक़रीबन दस दिनों बाद जब मै अपने घर लौटा तो दुसरे दिन उनसे मिलने के लिए उनके घर गया उनकी पत्नी से मुलाकात हुई ..वो रोते हुए बोली कि तुम कहाँ चला गया था वो बराबर तुमको याद करते रहे, लेकिन तुमसे बात नहीं हो पाई। वो तो अपनी अनंत-यात्रा पर अकेले ही चले गए मुझे साथ लेकर नहीं गए अब उनके बगैर यह जिंदगी कैसे काटूंगी। उनकी रुदन में जो दर्द था वो मुझे अन्दर तक झकझोर दिया। उनका बेटा जो भारत में था अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ आया था उनके दाह-संस्कार के बाद क्रिया-कर्म में भाग लेने के लिए ।
कभी-कभी सोंचता हूँ जिंदगी इतनी बे-मानी क्यों है, अक्सर हम अपने बच्चों अपने परिवार के लिए जीते है जिनके लिए जिंदगी भर कि जमा-पूंजी उनके भविष्य को बनाने में लगा देते है लेकिन अंतिम समय में वही बच्चे हमारे साथ नहीं रहते हैं। आज के भौतिक-युग में पैसा सर्वोपरि हो गया है शायद अपने खून के रिश्ते से भी ऊपर.

Wednesday, June 2, 2010

समय: यात्रा वृतांत (बिहारीपन)

समय: यात्रा वृतांत (बिहारीपन)

यात्रा वृतांत (बिहारीपन)

मै कुछ साल पहले कोटा (राजस्थान) जा रहा था क्यों कि मेरा बड़ा पुत्र इंजीनियरिंग की तैयारी कोटा से ही कर रहा था। मै पटना से दिल्ली गया, दिल्ली से कोटा के लिए निज्ज़ामुद्दीन स्टेशन से इंटरसिटी ट्रेन पकड़ कर कोटा जाने के लिए ट्रेन पर बैठ गया मेरे साथ मेरी पत्नी भी थी, मेरे बगल वाली सीट पर एक सज्जन बैठे थे जो गाज़ियाबाद से थे, हम लोगो के बीच बाते हो रही थी, वो भी कोटा ही जा रहे थे वो मुझसे पूछ बैठे आप कहाँ से है मैंने कहा मै पटना, बिहार से हूँ। बिहार शब्द सुनने के बाद वो मेरी तरफ कुछ अजीब नज़रों से देखे, और कहने लगे अच्छा-अच्छा आप बिहार से है, फिर वो बिहार के बारे में कुछ अजीब-अजीब बाते कहने लगे, जैसे की उनको बिहार से या बिहारी से बहुत सारी शिकायत हो। जब मै उनकी बातों को सुनते-सुनते उब गया तो मै उनसे पूछा, आप क्या करते हैं, तब उन्होंने बताया मै एयरफ़ोर्स में नौकरी करता हूँ (बीते कुछ वर्षो पहले वो बिहार के बिहटा नामक जगह में एयरफ़ोर्स में रह चुके थे) मैंने उनसे पूछा आप बिहार में तीन साल तक नौकरी कर चुके हैं और बिहारियों के प्रति आपके मन में इतनी घ्रिडा है, क्या बिहारियों ने आपके साथ कोई बत्तिमिजी की है जो हम बिहारियों के प्रति आपके मन में इतनी घ्रिडा है, तब उन्होंने कहा आरे मै आर्मी का आदमी हूँ, इतनी हिम्मत है कि वो मुझसे बत्तमीजी कर सकें। तब मैंने उनसे पूछा जब उन्होंने कोई बत्तमीजी नहीं कि तो फिर उनसे इतनी घ्रिडा क्यों ? तब वो बोले आरे मारिये बिहारी उज्जड, गंवारऔर बेवकूफ होते हैं जहाँ जाइये ये मजदूरी करते मिल जायेंगे, पुरे भारत में फैले हुए है।
यानि उनके नज़र में बिहारी उज्जड,गंवार,बेवकूफ और मजदुर किस्म के होते है।
मैंने उनसे कहा कि बिहारियों के प्रति गलत धारणा आपके मन में है। आप किसी भी बड़े शहर में चले जाइये ऊपर से नीचे तक नौकरी में आपको बिहारी लड़के ज्यादा मिलेंगे, किसी भी यूनीवर्सिटी या कॉलेज में चले जाइये आपको बिहारी लड़के सबसे ज्यादा मिलेंगे और तो और आप कोटा जा रहें है वही आप अनुपात मिला लीजियेगा कि इंजीनियरिंग और मेडिकल कि तैयारी में बिहारी लड़के कितने है और पुरे भारत से कितने है। हकीकत तो यह है कि बिहारी लड़के अपने पढाई के बल पर अपनी विद्वता के आधार पर आपके राज्य में वो जगह हांसिल कर लिए है जिस पर आपका अधिकार बनता है क्यों कि आप में वो विद्वता नहीं है जो बिहारी लड़कों में है इसलिए आपकी जगह वो हांसिल कर रहे हैं। और जलन का मुख्या उद्देश्य यही है, इसीलिए बिहारियों को आप लोग बदनाम करते है। मैंने उनसे कहा कि बिहार वो जगह है जहा गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था,आज कितने देश बौद्ध धर्म को अपनाएं है, महावीर ने जैन धर्म का प्रचार वही से शुरू किये थे, उनको भी ज्ञान वही मिला था। आधी दुनियां पर राज करने वाले अशोक सम्राट बिहार से ही थे, दुनिया कि पुरानी यूनिवर्सिटी में नालंदा यूनिवर्सिटी का नाम पहले आता है जहाँ विदेशों से लड़के पढने के लिए आते थे। महात्मा गाँधी जब अफ्रीका से भारत आये तो देश कि आज़ादी का शंखनाद करने के लिए पुरे भारत का भ्रमण कर लिए लेकिन किसी भी राज्य में उनको मुठ्ठी भर लोग नहीं मिले जो देश कि आज़ादी के संघर्ष में उनका साथ दे सकें तब उनको बिहार के लोग ही मिले आज़ादी कि लड़ाई में साथ देने के लिए, तब गाँधी जी ने बिहार के पच्छिम चंपारण से देश कि आज़ादी का शंखनाद किया। बिहार कि गरिमा इतनी बड़ी है कि उसको किसी कि सहारे कि जरुरत नहीं है। वो सज्जन मेरी बातें सुने, कोई जबाब नहीं दिए, शायद उनके दिल में बिहार या बिहारियों के प्रति जो नफरत थी वो कम हुआ या नहीं मै अनुमान नहीं लगा पाया, क्यों कि फिर वो पुरे रास्ते मुझसे बात नहीं किये। मै आज तक यह नहीं समझ पाया कि बिहारियों के प्रति बाकि राज्यों में गलत धारणा क्यों