Thursday, August 19, 2010

ब्रम्ह है, ब्रम्ह नहीं है ?


इन्सान के मन-मस्तिष्क, दिलो-दिमाग पर अपनी सत्ता कायम करने वाले अनदेखे अनजाने उस ब्रम्ह कि मै बात कर रहा हूँ , जो है भी और नहीं भी है?
ब्रम्ह नहीं है :- क्यों कि मैंने उसे देखा नहीं है, उसका आकर क्या है, प्रकार क्या है, दिखता कैसा है, रंग क्या है ? आज के पढ़े-लिखे इन्सान यकीन तब ही करता है जब उसे देखता है, छुकर उसे महसूस करता है बिना जाने समझे वह किसी भी मनगढ़ंत बातों पर यकीन नहीं करता। वह प्रयोगवादी है और प्रयोग कर सत्य जानने कि कोशिश करता है। इसी सत्य कि खोज़ में आज का मानव आकाश, पाताल और धरती पर अपनी खोज़ जारी रखी है। इस सत्य कि खोज़ का अंत कहाँ है यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है और इन्सान भविष्य नहीं जान सकता ? जब से इस पृथ्वी पर इंसान कि उत्पत्ति हुई है उसी समय से वह सत्य कि खोज में लगा हुआ है, वह सत्य कि जब एक तार को छेड़ता है तो अनगिनत तरंगे प्रतिध्वनित होती है। अब इन्सान उन अनगिनत तरंगो कि खोज़ शुरू करता है जब उसको सुलझाने के करीब पहुंचता है तो फिर कोई और तरंगे प्रतिध्वनित होती है और खोज़ दर खोज़ यह सिलसिला चलता ही रहता है, चलता ही रहता है ....... यानि वृत्त के छोर को खोजना। यह कब तक चलेगा, इसका अंत कहाँ है। इसका जवाब किसी के पास नहीं है ? यह एक अंतहीन सिलसिला है।

ब्रम्ह है :- मैंने उसे नहीं देखा है, लेकिन हर पल उसकी उपस्थिति का एहसाश होता है। शायद वह निराकार है, स्याह अँधेरी काली रात कि तरह जिसमे अपनी आँखों के प्रतिविम्ब भ्रम होता है, जिसमे कुछ भी दिखाई नहीं देता है सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। उसकी विशाल सत्ता में नील गगन, नछत्र, तारे, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल है। मानव शारीर का निर्माण भी पांच तत्वों से हुआ है :- अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश। उसकी सत्ता में जीवन है मृत्यु नहीं है क्यों कि आत्मा अजर-अमर है, इसे कोई भी शक्ति मिटा नहीं सकती है, विनाश होता है तो केवल शारीर का, और यह शारीर फिर उन्ही पांच तत्वों में विलीन हो जाता है। यह अंतहीन सिलसिला चलता ही रहता है। उसके साम्राज्य में जीवन कहाँ-कहाँ है आज का विज्ञानं या मानव उसे नहीं ढूढ़ पाया है। हमारे भारतीय पूर्वजों या ऋषि मुनियों ने पौराणिक पुस्तकों में बहुत से लोक का जिक्र किया है जैसे:- शिवलोक, ब्रम्ह्लोक, विष्णुलोक, इन्द्रलोक, मृत्युलोक और न जाने कौन-कौन से लोक है इस ब्रह्मांड में जहाँ जीवन है। विज्ञानं इस खोज में लगा है, हो सकता है कल दूसरी दुनियां खोज ली जाय, जैसे कि रामसेतु का होना या द्वारिकापुरी का होना पौराणिक पुस्तकों में ही था जब नासा के वैज्ञनिको ने रामसेतु का फोटो और द्वारिकापुरी कि खोज पूरी दुनियां के सामने लाया तब लोगों ने यकीन किया। वैसे ही जब कोई दूसरी दुनियां ख़ोज ली जाएगी तब लोग यकीन करेंगे, जब कि हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों ने हजारो साल पहले ही दूसरी दुनियां खोज ली थी। पौराणिक पुस्तक में ही सात सूर्य का जिक्र किया गया है जब कि एक ही सूर्य को विज्ञानं आज तक जान पाया है। क्या पता जिस ब्रम्हांड को हम देखते है जिसमे सूर्य, चंद्रमा, तारे, पृथ्वी, नछत्र है इससे परे कोई और ब्रम्हांड हो या अनेको ब्रम्हांड हो जिसकी हम कल्पना भी नहीं करते है ? क्यों कि नील गगन का न प्रारम्भ है ना ही अंत है तो हम फिर कैसे यह मान ले कि इस नील गगन में यही एक ब्रम्हांड है ? हमारा खगोल विज्ञानं अपने ही ब्रम्हांड के रहस्य को नहीं जन पाया है तो फिर वह दुसरे ब्रम्हांड कि कल्पना कैसे कर सकता है , लेकिन यह सत्य है कि इस नील गगन में और भी ब्रम्हांड है जहाँ हमारे ही ब्रम्हांड कि तरह सब-कुछ है लेकिन हमारे विज्ञानं के पास वैसे साधन नहीं है जहाँ यहाँ के मानव पहुँच सके . या यो कहे कि हम कुँए के मेढक है कुँए के अन्दर से जितना ब्रम्हांड नज़र आता है उसी को हम पूरा ब्रम्हांड मान लेते है, शायद हमारा विज्ञानं भी उतनाही को ब्रम्हांड मान लिया है जितना उसको नज़र आता है .
हम सभी मानव, जीव-जंतु, पेड़-पौधा मृत्युलोक के वासी है और मृत्यु ही सत्य है। अगर हम अपने पुरे जीवन कि गड़ना करे तो पाते है कि २३००० से २५००० दिन भी नहीं जी पाते है इस मृत्युलोक में और इसी २३००० दिनों में बचपन, जवानी और बुढ़ापा सब देख लेते है फिर इस शरीर का अंत हो जाता है। उस ब्रम्ह के रचे लिलाओ में से फिर कोई नया पात्र बनकर फिर से कोई नया जीवन जीते है। यह सिलसिला चलता ही रहता है, जबतक यह सृष्टि है।
उसकी सत्ता में न कोई धर्म है न कोई जाती है और नहीं उंच-नीच का भेद-भाव। यह मानव मस्तिष्क कि विकृति है जो इस मृत्युलोक में धर्म, जाती और उंच-नीच बाँट दिया है। उस अनजाने ब्रम्ह के अनेको नाम है जिसे धर्म के हिसाब से नाम दिए गए है जैसे - ईश्वर, अल्लाह, जीजश
उसकी उपस्थिति हर जगह है आप यकीन करे या नहीं करे ? यकीन करना या नहीं करना यह आपके ऊपर निर्भर करता है। अगर इस पृथ्वी पर जीवन है तो ब्रम्ह भी।
अपने यहाँ चार पुरुषार्थ गिनाये गए है, धर्म, अर्थ, काम और मोक्छ। ये चारो निवंचन इशोपनिष के प्रथम श्लोक में आया है। मतलब यह कि जो सभी को अनुशासित करता है या जिसका आधिपत्य सब पर है " वही ईश्वर है " । उसे नहीं मानना स्व्यंग को भी झुठलाना है।
जो अपने को नहीं जानता वही ईश्वर को भी नहीं मानता है।

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