Saturday, May 1, 2010

समाज में महिला का स्थान


हमारे भारतीय समाज मे नारी को वह स्थान नहीं मिला है जो पुरुष को मिलाहै।आधी आबादी वाली महिला समाज को दुसरे दर्जे का ही स्थान मिला है ऐसा क्यों जब कि नर और नारी एक दुसरे पर आश्रित है, इन दोनों के बिना परिवार या समाज कि कल्पना नहीं कि जा सकती तो फिर क्यों नारी को दूसरा स्थान मिला है जहा तक चरित्र कि बात आती है तो क्यों नारी पर ही ऊँगली उठत्ती है ? क्या पुरुष चरित्रहीन नहीं होते है तो फिर क्यों हम नारी पर ही ऊँगली उठाते है। शायद पुरुष समाज इस नारी शक्ति को पहले ही आंक चूका था तब ही उसकी ताकत को दबाया और समाज मे उसे दूसरा स्थान दिया, जहाँ तक नारी कि बात है तो वो जननी है, वो शक्ति है, वो माँ है, वो पत्नी है, वो बहन है, वो बेटी है, जिस तरह मिटटी मे अन्न के कुछ दाने डालने पर वो बदले मे अन्न के हजारो दाने हमको लौटती है उसी तरह नारी आपके वंस को चलाने के लिए अपने खून और मांस से निर्मित बच्चे को जन्म देती है ताकि आपका वंश चलता रहे। उसकी तुलना हम पृथ्वी से करते है, वो अग्नि है, क्यों कि उसे अग्नि से लगाव है, आप ज्यादातर आत्महत्या के कारणों में पायेगे की औरते अग्नि के द्वारा ही जीवन लीला समाप्त करती है। वह लक्ष्मी है अगर आप उसकी इज्ज़त करते है तो आपका घर खुशियो से भर जाता है। वह दुर्गा है, जब उसके आत्म सम्मान पर चोट लगाती है तो वह दुर्गा का रूप धारण कर लेती है। समाज की क्या बिडम्बना है कि हम मंदिर में पूजा तो देवी का करते है लेकिन घर में उसके सम्मान को बार बार चोट पहुचाते है। लता जी का एक गाना याद आता है, औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया, जब दिल चाहा मचला कुचला, जब दिल चाहा दुत्कार दिया,

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