Tuesday, September 20, 2011

लूट मची है लूट मची, जहाँ भी देखो मची है लूट

लूट मची है लूट मची, जहाँ भी देखो मची है लूट
मंत्री, सांसद या नेता हो चाहे कोई अभिनेता हो
उद्योगपति हो या व्यापारी चाहे कोई हो अधकारी
लूट रहे है ऐसे मिलकर जैसे है नहीं इनका देश
भिखारी तुम बनकर ऐसे लूट रहे हो अपना देश
देश तुम्हारा अपना ही है जिससे है तेरी पहचान
सभी लूटे है तेरे देश को तुम तो लूटना बंद करो
नहीं कोई चंगेज के वंशज नाही तूम अंग्रेज हो
वही लुटेरे लुटेरे थे जो लूट लिए थे तेरे देश को
इच्छाओं पर रोक लगाओ नहीं तो बढ़ता जायेगा
इसकी पूर्ति कभी न होगी क्या कोई कर पाया है
क्या तुम पूरा कर पाओगे, जो तेरी अभिलाषा है
नहीं करोगे मरोगे ऐसे त्यागो अब तुम लालच को
देश तुम्हारा अपना ही है इसको अब समृद्ध करो

Friday, September 16, 2011

लालच बुरी बला है बचपन में पढ़ा था मैंने

लालच बुरी बला है  
बचपन में पढ़ा था मैंने
इस लालच बुरी बला को  
मै छोड़ दिया था पहले
था आदर्श कुछ अपना भी 
नहीं इसे अपनाएंगे
रुखी सुखी ही खायेंगे
पर मस्तक नहीं झुकायेंगे
बचपन से जब जंवा हुए 
अपने पैरों पर खड़ा हुए
बचपन कि वो सब बाते 
मै भूल गया था अबतक
अब याद नहीं आदर्श कि बाते 
याद नहीं है वो बचपन
कंधो पर जब बोझ पड़ा तो
भूल गया आदर्श कि बाते
अब याद नहीं आदर्श कि बाते
चाह है आगे बढ़ने कि
जो मिल जाता वो छोटा है
जो नहीं मिला वह पाना है
मै मृगतृष्णा में भटक गया
और लालच में फंसता ही गया
इस लालच का कोई अंत नहीं है
यह तो बढ़ता जाता है
इस लालच में है गँवा दिए
अपना जमीन अपना ज़मीर
अब गया वो बचपन गई जवानी
बुढ़ापे संग डोल रहा
पाया क्या है समझ न में आता
जो खोया है वह सोंच रहा
मै खो दिया है जीवन अपना
हाथ लगा ना कोई सपना

महंगाई क़ी एक और मार


                                            डरे हुए हम लोग सभी है मनमानी कर रही सरकार।
                                            बढ़ा
बढ़ा कर महंगाई को जीना कर दिया है दुश्वार
                                           ऐसा
जीना क्या जीना जहाँ मर मर के हर रोज जिए
                                          जिन्दा हो तो निकलो तुम फिर छीनो अपना अधिकार

एक बार फिर तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल कि कीमतों में ३.१४ रूपये का इजाफा कर मध्यवर्गीय लोगो कि परेशानियाँ बढ़ा दी है या ये कहे कि उनके मासिक बज़ट पर प्रहार किया है। हर बार तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम महंगे होने से पेट्रोल के दाम बढ़ते थे लेकिन इस बार पेट्रोल का दाम बढने का कारण दूसरा ही है। डालर के मुकाबले रूपये के कमज़ोर होने से कच्चे तेल का आयत महंगा पड़ने कि आड़ में पेट्रोल कि कीमतों में ३.१४ रुपए इजाफा किया गया है। पिछले वर्ष जून से अब तक पेट्रोल के दाम दस बार से ज्यादा बढ़ चुके है अगर बढ़ने कि रफ्तार यही रही तो इस साल के अंत तक पेट्रोल कि किमत १००/- रुपए प्रति लीटर तक पहुँच जायेगा। सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य पर से नियंत्रण मानो कंपनियों की मनमानी के लिए हटा लिया हो। जब मन में आया दाम बढ़ा दिया। कंपनियों के घाटे की चिंता तो सरकार को है। आम आदमी के दम निकलने की चिंता कौन करेगा ?
पेट्रोल की ज्यादा खपत मध्यम वर्ग में होता है। चाहे वो दोपहिया गाड़ी (मोटरसाईकिल, स्कूटर या स्कूटी) या तीन चक्के की गाड़ी ऑटो रिक्शा अगर वो चार चक्के की गाड़ी लेता है तो अधिकांश पेट्रोल माडल ही होता है।
क्या सरकार जनता की परेशानियाँ नहीं समझ रही है। पेट्रोल की कीमत बढने से महंगाई और बढ़ेगी, लोगों पर अतिरिक्त भोझ बढ़ता जायेगा। यह सरकार के हित में भी गलत ही होगा क्यों की जनता सरकार से दूरियां बढ़ाएगी। अगला चुनाव जीतना भी वर्तमान सरकार के लिए मुश्किल हो जायेगा। या कही सरकार यह तो नहीं सोंच रही है की पांच साल के लिए सत्ता जो हाथ में आई है इसमें जीतना लूटना हो लूट लो क्यों की अगला चुनाव तो हम जितने नहीं जा रहे है इसलिए महंगाई दर इतना ऊपर कर दो की अगले चुनाव के बाद जो सरकार चुन कर आएगी उसे मुसीबतों का सामना करना पड़े। फिर हमारे पास बहुत समय रहेगा नई सरकार को बदनाम करने के लिए और तबतक जनता हमारी गलतियों को भूल गई रहेगी। (यानि की पांच साल के अन्तराल के बाद सत्ता में आने का खेल शुरू होगा)
महंगाई का अगर आलम यही रहा तो लोग अन्दर ही अन्दर टूटते जायेगें (आक्रोशित होंगे) नतीजा यह होगा की लोग सडको पर फिर से उतरेगे और इस बार कोई अन्ना नहीं होंगे बल्कि जनता होगी सिर्फ आक्रोशित जनता जिसका नेत्रित्व जनता ही करेगी वैसे में हमारे मुट्ठी भर राजनेताओ का क्या होगा जो अपने को राजा समझ बैठे है।

Sunday, September 4, 2011

जन-आन्दोलन


अन्ना हजारे का आन्दोलन एक सवाल खड़ा करता है भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में इतने बृहत् पैमाने पर जन-आन्दोलन क्यों सफल होता है। एक तरफ जनता खड़ी तो दूसरी तरफ सरकार। भारत को आज़ादी मिले ६४ साल ही हुआ है लेकिन इन ६४ सालों में ऐसा जन-आन्दोलन दो बार हो चूका है। पहला जन-आन्दोलन १९७४ में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेत्रित्व में हुआ था उस समय भी केंद्र में कांग्रेस पार्टी ही सत्ता में थी और दूसरा जन-आन्दोलन २०११ में अन्ना हजारे के नेत्रित्व में हुआ और इत्तफाकन इस बार भी केंद्र में कांग्रेस पार्टी ही सत्ता में है।
ऐसे जन-आन्दोलन क्यों सफल होते है:-
[१] जनता द्वारा चुने हुए जन-प्रतिनिधि अपने कार्यो को जनता के हितो में नहीं करते है जिसके कारण जनता के अन्दर आक्रोश बढ़ने लगता है जिसके कारण ऐसे जन-आन्दोलन उभरते है।
[२] लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अगर किसी एक पार्टी कि सरकार दो तीन चुनाव जीत कर लगातार सत्ता में रहती है तो वह अपनी मनमानी करने लगती है जिसका असर जनता पर पड़ता है। क्यों कि लगातार सत्ता में रहने वाली सरकार जनता के हितो का ख्याल नहीं रखती है यानि वह निरंकुस शासक कि तरह कार्य करने लगती है और वही पर जनता के अन्दर आक्रोश बढ़ने लगता है फिर वह आक्रोश जन-आन्दोलन का रूप ले लेता है।
पिछला चुनाव जीत कर जब कांग्रेस पार्टी केंद्र कि सत्ता में आई तो सबकुछ ठीक-ठाक था उसने कार्य भी अच्छा किये, भारत कि अर्थ-व्यवस्था को एक नई ऊंचाई दी, जनता को भी लगा कि सरकार देशहित में कार्य कर रही है इसलिए जनता दुसरे चुनाव में कांग्रेस के प्रति ज्यादा उत्सुकता दिखाई और इसके सांसदों कि संख्या पिछले चुनाव के वनिस्पत ज्यादा सांसद चुनाव जीत कर लोकसभा में आये। शायद जनता से यही चुक हुई जिसका फायदा कांग्रेस पार्टी ने उठाई।
दुसरे दौर में कांग्रेस पार्टी केंद्र कि सत्ता पर फिर काबिज़ हुई और उसके बाद महंगाई बे-लगाम बढती गई, सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया कि इस बढती महंगाई में जनता कैसे अपने जीवन को चला पाएंगी मध्यमवर्ग और नीचलावर्ग इस महंगाई में पीस ही गया लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठने के बजाय और नीचे ही गिरता चला गया। जो इस महंगाई का सामना नहीं कर पाए वो दुनियां से ही पलायन कर गए। इस महंगाई के दौर में अमीर और अमीर बना और गरीब और गरीब हुआ। यह सरकार के गलत नीतियों का ही परिणाम था।
इसी सरकार में कुछ इतने बड़े-बड़े घोटाले हुए जिसकी कल्पना भी आम जनता नहीं कर सकती है। 2G स्पैक्ट्रम घोटाल १७६३७९ करोड़ रूपये का , कामन वेल्थ गेम घोटाला यह ८००० करोड़ रुपये का , आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी घोटाला (कारगिल युद्ध में शहीद सैनिको के परिजनों के लिए तथा कारगिल के वीरों के लिए) और न जाने छोटे बड़े कितने घोटाले होंगे जो उजागर नहीं हो पाए है।
स्विट्जरलैंड के बैंक में सत्तर लाख करोड़ रुपया भारत का जो कालाधन के रूप में पड़ा है उसके लिए भी सरकार कोई पहल नहीं कर रही है ताकि उस रुपये को भारत लाकर देश को एक सम्प्पन राष्ट बनाया जा सके।
देश कि आर्थिक स्थिति सुधरी है लेकिन किसके लिए क्या गाँव में रहने वाला किसान जो पूरी जिंदगी खेतो में हल चला कर भी दो वक्त कि रोटियां नहीं जुटा पाता है अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी नहीं दे पाता है। वह मजदुर जो गावों में रहता है जो पूरी जिन्दगी मजदूरी करता है फिर भी कभी पेट भर खाना नहीं खा पाता है। उसे क्या मालूम कि देश तरक्की कर रहा है, क्यों कि उसके दिनचर्या में कोई तबदीली नहीं आई है जैसा वह कल था वैसा ही आज भी है।
लोकसभा और राज्यसभा में जितने भी सांसद है वो सभी करोडपती या अरबपती है (वो भले ही पहले गरीबी से आये हो लेकिन आज वो गरीब नहीं है ) ये गरीबो के बारे क्या सोंचेगे इनको तो कारपोरेट घराने से मतलब है और ये कार्पोरेट घराने के लिए काम भी करते है और उन्ही के हितो के लिए संसद में कानून भी बनाते है।
संसद में सच्चे समाजसेवी नेताओं कि संख्या कम होने लगी है जब कोई समाजसेवी नेता सांसद बनता है तो वह समाज कि हितो कि बात करता है या उनके लिए उनके हितो के लिए संसद में आवाज़ उठता है लेकिन अब चुनाव हाईटेक हो गया है। अब चुनाव जीतने के लिए ज्यादा पैसो कि जरुरत पड़ती है। अब उम्मीदवार ऐ सी रूम में बैठ कर चुनाव जीतने कि प्लानिंग करते है और चुनाव जीतते है। जब ये बेशुमार पैसे खर्च कर चुनाव जीतते है तो फिर गरीबो के बारे में क्यों सोंचेंगे ?
अब भारतीय राजनीत में अधिवक्ताओ कि संख्या तेजी से बढ़ने लगी है वर्तमान सरकार में ज्यादातर मंत्रिपद अधिवक्ता के ही हाथ में है साथ ही साथ विपच्छ में भी लोकसभा और राज्यसभा में विपच्छ के नेता पद पर अधिवक्ता ही विराजमान है। अब ये अधिवक्ता अपने केश के लिए उलटे सीधे गवाह खड़ा करते है सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर केश जीतते है। तो ये समाज का क्या भला कर सकते है ? माना ये पढ़े लिखे अच्छा वक्ता है कानून का ज्ञान इन्ही के पास है लेकिन यह जरुरी नहीं एक अच्छा पढ़ा लिखा व्यक्ति एक अच्छा राजनेता या समाजसेवक बन सके।
अन्ना हजारे का आन्दोलन कामयाब होने का मुख्य कारण यही है कि वर्तमान केंद्र में बैठी सरकार जनता के हितो का ख्याल नहीं किया अगर ख्याल किया होता तो इस तरह का आन्दोलन कभी कामयाब होता ही नहीं। आज जनता अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि तथा सरकार से उदासीन है। ऐसी नौबत क्यों आई इस पर सांसद और सरकार को मंथन करना चाहिए, कहाँ सरकार के कार्यो में चुक हुई जिसके चलते अन्ना हजारे का आन्दोलन कामयाब हुआ और सरकार को उनके मांगों के सामने झुकना पड़ा।