Friday, May 14, 2010

विश्वास

जीवन में कुछ घटाए ऐसी घटती है जो आपके दिलो दिमाग पर एक अमित छाप छोड़ जाती ही जिसे आप चाह कर भी भुला नहीं पाते है और वह बराबर आपके नज़रो के सामने चलचित्र की तरह चलती रहती है। मेरे बचपन में भी कुछ घटनाये घटित हुई है जो मेरे जेहन में बस गई है, जब भी मै अपने अतीत में झांकता हूँ तो वह घटनाये एक चलचित्र की तरह मेरे नज़र के सामने से गुजरने लगाती है और मै उस निरंकार ब्रम्ह के प्रति यह सोंचने पर विवश हो जाता हूँ की उसने इन्सान को कितनी शक्ति दी है जो कुछ ऐसी बात कह जाता है जो समय आने पर सत्य हो जाता है। मेरी पहली घटना मेरी माँ से जुडा है, यह बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र महज़ ६ वर्ष की थी, उन दिनों हमलोग एक संयुक्त परिवार में रहते थे मेरे दादा, दादी, पिता जी, माँ, तीन चाचा, एक चची दो फुआ मेरे बड़े भाई मै और मेरी छोटी बहन यह हमारा परिवार था। मेरी छोटी बहन उस समय डेढ़ या दो साल की होगी, उसे माता माई (Small Pox) निकल गया था, उस समय में उपचार के नाम पर लोग घर के दरवाजे पर नीम की पत्ती टांग देते थे और जिसको माता माई निकलती थी उसके बिछावन के निचे नीम की पत्ती रख दिया जाता था, घर को पानी से धोकर साफ़ रखा जाता था यानी घर के वातावरण को पूरी तरह से सात्विक रखा जाता था संध्या में अगल बगल की महिलाएं आकर माता माई का गीत गाती थी, खाने में जो परहेज होता था उसमे दाल में हल्दी नहीं पड़ता था एवं तावे की रोटी नहीं बनती थी साथ ही लहसुन प्याज़ वर्जित था। संध्या में जब औरते माता माई का गीत गाती थी तो मै भी वही बैठ जाता था, एक दिन औरते संध्या में गीत गा रही थी और दिनों की तरह मै भी वहा बैठा था अचानक मेरी माँ रोने लगी और कहने लगी मेरी बच्ची का आँख बह गया, मेरी बच्ची का आँख बह गया, रोते रोते अचानक चुप हो गई और दिवार की तरफ मुंह कर के कहने लगी "माता मैया अगर आप मेरी बच्ची की आंख दे सकती है तो इसको जिन्दा रखे, क्यों कि यह लड़की जाती है, अगर आप इसका आंख नहीं दे सकती है तो इसको उढ़ा लीजिये, लगा माँ दिवार कि तरफ मुह करके किसी से बाते कर रही हो, जो औरते गीत गा रही थी उन लोगो ने माँ को समझाने कि कोशिश कि लेकिन माँ कि आँखों में ममता कि विवशता देख सभी औरते चुप हो गई और अपने अपने घर को चली गई, हम लोग भी खाना खाने के बाद सो गए। सुबह सुबह मेरी माँ रोने लगी और कहने लगी मेरी बच्ची को माता माई उढ़ा ले गई यानी कि मेरी छोटी बहन अब इस दुनिया में नहीं रही।
मेरी दूसरी घटना तब घटी जब मै आठ साल का था, मेरी माँ को पीलिया रोग हो गया था छोटे जगहों में लोग दवा पर कम दुआ और झड फूंक पर ज्यादा विश्वाश करते, मेरी माँ का रोग जब बहुत बढ़ गया तो पिता जी माँ को लेकर पटना गए साथ में मेरी दादी और चाचा भी गए। मेरी माँ का इलाज हुआ लेकिन वो बच नहीं पायी, यह घटना उसी वक़्त कि है मै मेरे बड़े भाई और फुआ साथ में मुन्नी जो हमारे यहाँ काम करते थे वो हम सभी चारो आदमी, गर्मी के मौसम में रात को छत पर सोये थे अचानक मेरे बड़े दादा बिश्वनाथ केशरी अपने छत से रात तक़रीबन दस बजे जोर जोर से बोलने लगे एय मदन एय मदन देखो ऊपर देखो तुम्हारी माँ जा रही है, उस वक़्त हमलोग बहुत छोटे थे कुछ समझ नहीं पाए कि दादा क्या बोल रहे है, हम लोग रोने लगे तो फुआ और मुन्नी हमलोगों को चुप कराये, दुसरे दिन भैया स्कूल जा रहे थे मै भी स्कूल जा रहा था रास्ते में देखा दादी पिता जी सभी लोग रिक्शा से आ रहे है, खुशी हुई चलो माँ आ गयी, जब घर में गया तो सभी लोग रो रहे थे तब मालूम हुआ कि मेरी माँ अब इस दुनिया में नहीं है। इन दो घटनावो पर ध्यान देता हूँ तो मुझे उस निरंकार ब्रम्ह कि शक्ति पर अटूट विश्वास होता है कि वो हर समय हर घडी हमारे साथ रहता है और समय आने पर वह हमारे ही जुबान से शब्दों का इस्तमाल करता है।

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