Friday, June 25, 2010

संबिधान में बदलाव करो


भारत का संविधान आज़ादी के बाद लिखी गई थी उस वक़्त देश में साक्षर लोगों कि संख्या कम थी इसलिए अनपढ़ और गवांर लोगों को भी विधान सभा या संसद का चुनाव लड़ने के लिए योग्य माना जाता था,ये तब कि बात है जब १९४७ में अंग्रेज भारत छोड़े थे उस समय १२% साक्षरता देश में थी इसलिए संवैधानिक तौर पर सभी लोग योग्य माने गए थे लेकिन आज हमारे देश में साक्षर लोगों कि संख्या ७६.९% है,और आज भी अनपढ़ गवांर लोगों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है या ये कहे कि संवैधानिक तौर पर योग्य है। अब सवाल यह उढ़ता है कि ये अनपढ़ और जाहिल लोग विधान सभा या संसद में जाकर क्या करेंगे, केवल हल्ला करेंगे,क्यों कि संवैधानिक ज्ञान तो इनके पास होती नहीं है जो कि देश कि राजनितिक चर्चा में भाग ले सके, तब क्यों नहीं ऐसे लोगों को संवैधानिक तौर पर टिकट देना बंद कर दिया जाय ?

अब जरुरी हो गया है कि संविधान में एक संशोधन हो और चुनाव लड़ने का वही अधिकारी होंगे जो कम से कम बी.ऐ.तक कि पढाई पूरी कि हो साथ ही वोट देने का उसे ही अधिकार होगा जो कम से कम मैट्रिक कि परीक्षा पास कि हो।

अगर हमारे सांसदों को जरा भी देश के प्रति लगाव होगा तो वो संविधान में संशोधन के पक्छ में एक मत होंगे और इस तरह के संशोधन के बारे में जरुर सोंचेंगे , हाँ यह जरुरी है कि इस तरह वोटो कि संख्या कम हो जाएगी और छोटभैये राजनीतिज्ञों कि दाल नहीं गलेगी , लेकिन यह भी सही होगा कि अच्छे राजनेता संसद में जायेंगे। जहाँ तक राज्य स्तरीय पार्टी जो बरसाती मेढक कि तरह पुरे देश में फैली है उसकी भी संख्या कम होगी और केंद्र में मिली-जुली सरकार बनाने का सपना भी कम होगा साथ ही कुर्सी के लिए ब्लैक मेलिंग कम होगी।

1 comment:

Unknown said...

माना कि शिक्षा सभी सुसंस्कारों की जननी है!
लेकिन भ्रष्टाचार केवल शिक्षित लोगों की करनी है!!
क्या पढ़े-लिखे और तथाकथित सुपर ब्रेन आई ए एस और आई पी एस ने इस देश का बेडा गर्क नहीं किया है?
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जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in